गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

बहुत सागर सागर भजती थी देख लिया जरा देर नही लगी अपना से पराया करने में ,मैं तो मैं ,तुम भी गयी कम से .बधाई कितनी शिकायते अंतहीन कभी पूछके देखना कि क्या मैं सचमुच इतनी बुरी हूँ

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

खूब लिखा। बहुत खूब लिखा। लगता है सारे ज़हां का दर्द तुम्हारे जिगर में हैं। लोगों के बारे जो लिखा वो तो राम जाने सच है या झूठ, लेकिन लिखा बहुत जीदारी से है। लिखते रहो। लिखना यानि प्रवाहित होना। बहना। गतिमान होना। गति है तो सदगति है, नहीं तो दुर्गति। अलबत्ता दो बातों से सहमत नहीं हूँ। पहली यह कि संस्कार कभी परिवार से नहीं मिलते। वे परिवेश से मिलते हैं। परिवेश बदलता है तो संस्कार भी बदलते हैं। इलाहाबाद का भैय्या मुंबई का बिग बी हो जाता है। ये बदलाव परिवार के संस्कारों से नहीं आये। ऐसा होता तो वे ऐश के साथ कजरारे (शादी के बाद भी ) पर ठुमके नहीं लगाते। इलाहाबाद में होते तो भी नहीं लगाते। मुंबई में हैं इसलिए लगाये। हमें ही देख लो। हमारे परिवारों ने ये संस्कार कहाँ दिए कि एक डाली के सारे फूल अलग-अलग बिखर जाओ। मगर परिवेश ने इस मुकाम पर ला दिया कि........ । दूसरी बात ईश्वर की। निजी तौर पर मेरा तजुर्बा यह है कि ईश्वर सच के साथ होता है। हम अगर खुद एक पक्ष हों तो ज़ाहिर है कि हम खुद को ही सही समझेंगे। कई बार इसके उल्ट भी होता है। ईश्वर ततष्ठ है। निर्विकार है। उस पर संदेह क्यों ? सिर्फ इसलिए कि कुछेक बार वह हमें अपने साथ नहीं लगता। मेरे भाई, लगने और होने में बहुत फर्क होता है। जो इस फर्क को समझ गया वह सदा सुखी...... न समझे वो अनाड़ीहै.......!

बुधवार, 4 अगस्त 2010

धांसू पिच्चर और आंवले की चटनी

मम्मा, सौरभ अंकल आपको पसंद हैं न। पढ़िए उनकी लेखनी से निकला लेख।
सौरभ द्विवेदी
एकदम झिंटाक पिच्चर है 'थ्री इडियट्स'। सच्ची बोल रहा हूं, रिव्यू पढ़कर फंडे नहीं दे रहा। कल देखकर आया रात 11 बजे वाला शो। ज़िंदगी में पहली बार रेलगाड़ी जित्ती लंबी लाइन लगी थी प्रिया सिनेमा के सामने। खैर, अंदर पहुंचे तो पहली राहत मिली रित्तिक रौशन का ऐड बदला हुआ देखकर। यार, पिछले चार साल से वही पीली मोटरसाइकल से कीचड़ उछाल रहे थे रौशन बाबू। बोले तो कीचड़ के छींटों के कलर से लेकर उनकी टोपी पर लगे पीतल के बटन तक याद हो गए थे। अबकी नया ऐड आया, उतना ही बेवकूफाना, मगर नया, सो कुछ दिन झेला जा सकता है।

खैर, इस दफा पिच्चर की बात करनी है। तो खूब तो हंसी आई और करीना भी फॉर ए चेंज काफी दिनों बाद अपने मैनरिज़म से दूर फ्रेश लग रही थीं। खासतौर पर एक शॉट में कैमरा जब उनके चेहरे पर ज़ूम-इन करता है, तो आहाहाहा क्या होंठ लग रहे थे। जैसे ताज़ा गुलाब की दो पास-पास सिमटी पंखुड़ियों के बीच से ओस की तीन बूंदें झांक रही हों।

आमिर का चर्चा होता है कभी लुक को लेकर, कभी हटकर रोल को लेकर। मैं पूरी संजीदगी से यह कहना चाहता हूं कि आमिर दशक के अभिनेता हैं, नंबर और रेटिंग के सारे जोखिमों को ध्यान में रखकर भी यह ऐलान इसलिए क्योंकि आमिर परदे पर आमिर नहीं रहते।
आमिर अपने पहले ही शॉट में बुदबुदाते हैं, आल इज्ज वेल और आखिरी शॉट तक कहीं भी कुछ भी गड़बड़ नहीं लगता। दिमाग में पिच्चर जाने से पहले लग रहा था कि यार 40 प्लस के हैं, बीटेक स्टूडेंट कैसे दिखेंगे आमिर बाबू। मगर मैं खुश था कि मैं गलत था। ढीली-सी पैंट जिसके पायचे जूतों के सोल से याराना गांठ चुके हैं, टीशर्ट और बेफिक्र कंधे जो बता रहे थे कि फिल्म में बॉडी लैंग्वेज के हिस्से सबसे ज्यादा डायलॉग आते हैं।
शरमन जोशी कहीं से भी हीरो नहीं लगते और हमें सेवंटी एमएम के पर्दे पर अब हीरो देखने भी नहीं। कुछ अपने से दिखते लोग हों यार, जो रोएं तो सच्ची में लगे कि रो रहें, जब डरें तो लगे कि वाकई उनकी चौड़ी हो गई है। खैर शरमन ने बढ़िया काम किया। कैमरा जब उनके नाक के टिप पर बने निशान को दिखाता है, तो उस एक क्षण लगता है कि अब मेकअप बुद्धू बनाने की जुगत में ही नहीं लगा रहता। इसी तरह फिल्म के लास्ट में जब करीना अपने बाप से झगड़ती है तो उनके चेहरे पर मेकअप और आंखों में काजल नहीं होता। तब हमें सुंदर करीना दिखती है आंवले की चटनी की तरह, खट्टी-सी, अच्छी-सी और देखकर वैसा ही लगता है जैसे खट्टे आंवले को खाने के बाद तालू के नीचे और दांत के पीछे होता है, गुदगुदा-सा स्वाद।
खैर, आप भी सोचेंगे, कहां से ये करीना की तारीफ में लिखे ही जा रहा है। बोमन ईरानी ने बढ़िया ऐक्टिंग की। खासतौर पर जीभ को दांतों के बीच में लाकर संवाद अदायगी का तरीका। हालांकि यह नया नहीं है। 'एक रुका हुआ फैसला' में पंकज कपूर भी ऐसे ही डायलॉग बोल रहे थे और खूब जम रहे थे। माधवन की हंसी बहुत प्यारी है, मगर 'रहना है तेरे दिल में' के बाद से उन्होंने अपनी डबल चिन पर ध्यान ही नहीं दिया और हंसी उनकी आंखों से फिसलकर चेहरे के फैट पर चली जाती है। ऐक्टिंग में लेकिन पूरे नंबर।
अब बात असली हीरो लोगों की। सबसे पहले जोशी। इनका पहला नाम याद नहीं आ रहा तो अपने के लिए जोशी ही हैं। क्या कमाल की कहानी लिखी यार तुमने राजकुमार हिरानी के साथ मिलकर। शब्बास। मज़ा आ गया। कमाल कर दित्ता। राजकुमार हिरानी तो हैं ही अनूठे। कभी उनके फोटो गौर से देखी है आपने? मूंछों के ऊपर जो आंखें टिमटिमाती हैं न, उनमें गीलापन और हंसी दोनों एकसाथ दिखते हैं। इसीलिए उनकी फिल्में हंसाती हैं, रुलाती हैं, सिखाती हैं और हां, सिनेमा पर मेरी श्रद्धा को भी जमकर बढ़ाती हैं।
तो अपन ने कल रात पिच्चर देखी और उसे देखने के दौरान वैसा ही फील किया, जैसे मूंछों के शुरुआती निशान आते देख किया था। यार, उस टाइम पिच्चर जाते थे तो लगता था कि स्साला हीरो हीरो नहीं हम हैं, बस वो दुश्मनों से लड़ रहा है और हमें सिलेबस से लड़ना है। टॉप करना है, मेहनत से पढ़ना है और फिर एक दिन फूलों के प्रिंट वाले दुपट्टे को संभालती, हाथों में सुंदर से कड़े को गोल घुमाती और कभी क्लिप हटाकर बाल ठीक करती एक परी हमें भी मिल जाएगी। तो हिंदी सिनेमा हमें सपने देखना सिखाता है, उनमें रंग भरता है और हां, किस्सों की ताकत से रूबरू भी करवाता है।
आपको लग रहा होगा कि इस फिलम के मेसेज पर तो बात की ही नहीं। तो भैया उसके लिए तमाम लोग हैं, जो आपको एजुकेशन सिस्टम पर बताएंगे और तमाम बातें सुझाएंगे। अपन को तो एक बात करनी है और वो है आमिर खान का करीना की बहन की डिलिवरी करवाना। बड़ा नाज़ुक मसला है। स्साला लड़का लोग जब तक खुद बाप नहीं बनते, किसी का फूला पेट या किसी महिला की खराब तबीयत खुसुर-पुसुर या हल्के मज़ाक तक ही सीमित रहती है।
तब तक आप लोग इंडिया के सिनेमा का मजा लीजिए, जो बुद्धू है, लेकिन उतना ही प्यारा भी।
इडियट को हिंदी में बुद्धू ही कहेंगे न।

मुंह से दूर रखो

ममा, मैं अक्सर आपका मोबाइल मुंह में ले लेता हूँ। आप रोकती ही नहीं। पापा भी डॉक्टर होने के बावजूद मना नहीं करते। लेकिन यह खबर पढ़ने के बाद शायद आपको अपना ही मोबाइल फोन उठाने का जी न करे । यकीन करना मुश्किल लगता है
पर एक स्टडी से पता लगा है कि मोबाइल हैंडसेट कीटाणुओं का बड़ा घर बनते जा रहे हैं। हालत यह है कि टॉइलेट फ्लश के हैंडल से 18 गुना ज्यादा कीटाणु एक आम हैंडसेट में पाए जाते हैं। इस नतीजे पर पहुंचने से पहले ब्रिटिश रिसर्चरों ने कई हैंडसेटों पर रिसर्च की। इनमें से एक चौथाई इतने गंदे पाए गए कि उनमें टीवीसी बैक्टीरिया स्वीकार्य स्तर से 10 गुना ज्यादा पाया गया। टीवीसी या टोटल वायबल काउंट यह बताता है कि किसी भी सैंपल में बैक्टीरिया, यीस्ट जैसे माइक्रो ऑर्गेनिजम कितनी मात्रा में हैं। टीवीसी का ज्यादा लेवल इस बात का सबूत है कि व्यक्तिगत साफ-सफाई में भारी लापरवाही बरती जा रही है। यह स्थिति कीटाणुओं को पनपने का बड़ा मौका देती है।
एक हैंडसेट में बैक्टीरिया की तादाद इतनी ज्यादा थी कि यह मोबाइल यूजर के पेट में भीषण दर्द का कारण बन सकता था। रिसर्चरों ने 'विच?' मैगजीन के लिए यह स्टडी की थी। 30 फोनों के सैंपलों से पता लगा कि ब्रिटेन में इस्तेमाल हो रहे 6.4 करोड़ मोबाइलों में से 1.4 करोड़ फोनों से यूजर की हेल्थ को नुकसान हो सकता है। स्टडी से जुड़े लीड रिसर्चर जिम फ्रांसिस ने डेली मेल को बताया कि एक मोबाइल पर खतरनाक बैक्टीरिया इतने ज्यादा थे कि उसे स्टरलाइज करना पड़ा। सबसे ज्यादा गंदगी वाले फोन में इंटेरोबैक्टीरिया सेफ्टी लेवल से 39 गुना ज्यादा पाए गए। इंटेरोबैक्टीरिया बैक्टीरिया का ऐसा गुप है जो इंसान और जानवरों की निचली आंतों में रहता है। फोन में फूड पॉइजनिंग से जुड़े बैक्टीरिया और कोली जैसे कीड़े भी मिले। विच मैगजीन के मुताबिक, कीटाणु आपके हाथों में पनपते हैं और फोन पकड़ने पर वे हैंडसेट में चले जाते हैं। इसके बाद वे बार-बार हैंडसेट पकड़ने पर हाथों में आते रहते हैं। लोगों को चाहिए कि वे व्यक्तिगत साफ-सफाई का ख्याल रखें और जिन्हें भी फोन पकड़ाएं उन्हें भी सफाई का ध्यान दिलाएं। इससे पहले इसी मैगजीन ने पता लगाया था कि कुछ कंप्यूटर कीबोर्ड में टॉइलेट की सीट से भी ज्यादा खतरनाक बैक्टीरिया रहते हैं।

रविवार, 18 जुलाई 2010

कायम रहे ये मोहब्बत !

आज इतवार था। उम्मीद के मुताबिक आपने दिन और रात का ज्यादातर वक्त अपने कमरे में अपने पति और बेटे के साथ गुजारा। निस्संदेह बहुत आनंद भी आया होगा। बहुत-बहुत बधाई। भगवान ये नजदीकियां हमेशा कायम रखे।
महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है: दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायन् पिता दश। दश चैव पितृन् माता सर्वां वा पृथ्वीमपि। गौरवेणाभिभक्ति नास्ति मातृसमो गुरु:। इसका आशय यह है कि गौरव में उपाध्याय 10 आचार्यों से बड़ा होता है, पिता 10 उपाध्यायों से भी बड़ा होता है, लेकिन माता 10 पिताओं से भी बड़ी होती है। अपने इस गौरव से वह पृथ्वी को भी छोटा कर देती है। माता के समान दूसरा कोई गुरु नहीं है। अब सवाल उठता है कि बेमौसम बरसात क्यों ? यह अप्रासंगिक उल्लेख किसलिए ? चलो ये कहानी फिर सही।
पुरातन काल में प्रायः उन पुत्रों के नाम माँ पर अवलंबित होते थे जिनके पिता का पता नहीं होता था.....यथा जावाल ऋषि । अर्जुन इसके अपवाद थे। उन्हें कौन्तेय के नाम से जाना जाता था। पा भी तो भैया का नाम आपके नाम पर रख रहे थे। भैया अर्जुन हैं या जावाल ?
वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में उल्लेख है कि लंका विजय के बाद जब राम, सीता को वापस लेकर अयोध्या आते हैं, तब कहते हैं कि सुनो, मैंने तुम्हें प्रेमवश नहीं अपितु अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए रावण से छुड़ाया है। अब तुम स्वतंत्र हो। ये धरती तुम्हारी है....ये आसमान तुम्हारा है....दसों दिशाओं में जहां चाहो, जा सकती हो। राम पर कलंक था कि वे अपनी पत्नी को सुरक्षित नहीं रख सके। पा पर भी तो कलंक था। तुमने भैया के जरिये उन्हें कलंकमुक्त कर दिया.....अब अयोध्या ( सच कहें तो लंका ) में तुम्हारा क्या काम ? जहां चाहो, जा सकती हो। यहाँ बड़ी माँ को जो आना है..... पा कब तक धीरज धरेंगे ?
अब एक वाजिब सवाल ? इन हालात के लिए ज़िम्मेदार कौन ? ज़वाबदेह कौन ? अपराधी कौन ? उत्तर असंदिग्ध है- सागर .... सिर्फ और सिर्फ सागर। तुम्हारे विश्वास....तुम्हारी आस्था....और तुम्हारे समर्पण को सच्ची श्रृद्धा के साथ ह्रदय से नमन। अभिनन्दन। सागर की लहरों पर तुम पूरे भरोसे से बहती रहीं.... नतीजे में मिला रसातल। सागर की शर्म मैं जानती हूँ लेकिन इस से उनका अपराध कम नहीं होता।
सागर आपको प्यार करते हैं ? आपको शायद यकीन न हो लेकिन सच यही है कि बे-इन्तेहाँ प्यार करते हैं। प्यार है क्या ? जैसे मां भी प्यार करती है और पिता भी प्यार करता है। पति-पत्नी एक -दूसरे को प्यार करते हैं। हममें से कुछ लोग ईश्वर को प्यार करते हैं। ये सभी अपने-अपने लगाव को प्यार का श्रेष्ठतम रूप बताते हैं, लेकिन ये सब एक जैसे तो नहीं होते। कुछ फर्क होता है। वह फर्क कैसा होता है? मसलन, मां का प्यार अनकंडिशनल होता है, लेकिन पिता का प्यार कंडिशनल होता है। यानी तुम्हारे लिए मेरा प्यार उपलब्ध है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। तुम वे शर्तें पूरी करोगे, तभी मेरा वह प्यार प्राप्त कर सकोगे। दो प्रेमियों का प्यार वस्तुतः छलावा होता है। अक्सर तो वह होता ही नहीं है। मेरा प्यार अनंत है.... शायद सागर का भी। सच-सच बताना मम्मा, आज की तारीख में तुम भैया के अलावा और किसे प्यार करती हो ?
एक कहावत है - ' डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को जमीन छिपा लेती है।' इसी तरह चेखब ने लिखा है - 'डॉक्टर ज्यादातर मायनों में लुटेरों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फर्क यह होता है कि वे सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। मुझे पहले ये बातें समझ में नहीं आती थीं...... अब आने लगी हैं। तुम भी तो जमीन ही हो।
एक हिदायत यह भी दी जाती है कि - 'जो शख्स तुम्हारी ' निगाह ' से तुम्हारी जरूरत को समझ नहीं सकता , उस से कुछ मांग कर खुद को ' शर्मिंदा ' न करो।' यार मम्मा, अगर यह सच है तो आप और सागर तो कभी एक- दूसरे की ज़रूरत समझ ही नहीं पाएंगे.... जब दोनों एक-दूसरे से मिलोगे ही नहीं तो निगाह क्या खाक समझोगे ? वैसे मम्मा, एक बात के लिए सागर की दाद देनी पड़ेगी। कहते हैं कि अगर आपको पता चल जाए कि आप रेस हार चुके हैं और लोग विजेता के लिए तालियां बजा रहे हैं, उसके बाद भी दौड़ते रहना सचमुच हिम्मत की बात है। सागर यह हिम्मत तो दिखा ही रहे हैं..... और कमाल की दिखा रहे हैं। है न ? पता है आज मैंने उनसे क्या कहा ? मैंने कहा, ' अगर तुम मम्मा से प्यार करते हो तो उन्हें आज़ाद छोड़ दो। अगर वे तुम्हारी हैं (यानी तुमसे प्यार करती हैं ) तो तुम्हारे पास लौट आएँगी । अगर नहीं तो (अफसोस की बात नहीं क्योंकि) वह तुम्हारी थी ही नहीं। एक बार अपनी पारो को छूट देकर देखिए। पिंजरे का दरवाज़ा खोल दीजिए और देखिए कि क्या वह बाहर आकर भी आपके आसपास ही मंडराती है? यकीन मानिए, पिंजरे से बाहर आने के बावजूद जब वह कहीं और नहीं जाएगी तो उसके साथ रहने का आपका आनंद सौ गुना हो जाएगा। और अगर वह चली भी गई तो भी अच्छा ही है क्योंकि आपका भ्रम दूर होगा। आपको पता चल जाएगा कि जिस पंछी को आपने अपना समझकर पिंजरे में बंद करके रखा था, वह आपके साथ नहीं रहना चाहता था। और किसी को जबरदस्ती साथ रखने का न कोई मतलब है न ही आनंद।' मम्मा, ठीक कहा न मैंने ?

शनिवार, 17 जुलाई 2010

व्हिच थिंग इस मिसिंग ?

लडकियाँ अलग-अलग। उम्र भी अलग। माहौल और क्लास भी अलग। तीनो की शादी का वक्फा और पतियों का पेशा भी अलग। मिजाज़ तो खैर अलग-अलग होने ही थे। फिर भी एक एहसास तीनो को बिलकुल एक जैसा....... क्या ? यह कि सब कुछ बहुत शानदार है मगर फिर भी ........समथिंग इज मिसिंग.....! यह जो मिस है...यानी खो गया है... या खो सा रहा है वह बड़ा कन्फयूजिंग है......! यार मम्मा , इन तीनो लडकियों को ये क्यों लगता है कि इनका मैं खो गया है ? ये तीन अकेली नहीं हैं....इन जैसी जाने कितनी हैं.... उनका भी समथिंग मिस हो गया है। क्यों मिस हो गया ? कहाँ खो गया ? क्या सोचा था ? यह कि शादी के बाद ' दो इकाई गुना हो इकाई हुईं , धीरे - धीरे निलंबित हुईं दूरियां' जैसा कुछ नहीं करेंगे ? मैं को तिरोहित नहीं किया फिर भी विलेन हो गये पिया ?
उस शख्स की सोचो जिसका मैं भी गया और मज़ा भी नहीं आया। बहुत कुछ मिल जाये तो बहुत कुछ खो जाने का रोना रोने का शगल कितना दिलचस्प हो जाता है ?

कभी तो जनोगी ?

कहो अम्मा, कैसी हो ? आज शनिवार है। पापा के साथ बिजी हो। कल सन्डे है। यानी कल भी फुर्सत नहीं होगी। सोमवार को शायद.... जी हाँ, शायद सोमवार को आप इसे पढ़ लें....या जब भी पढ़ें , एक बात ज़रूर बताइयेगा.... अब जबकि वैज्ञानिकों ने यह तय कर दिया है कि पहले मुर्गी आई थी अंडा बाद में आया , अंडा क्या करे ? शर्म से डूब मरे ?
सवाल शायद हजम नहीं हुआ ! कोई बात नहीं। दूसरा सवाल सुनो। (पढो)। मैं कहीं नहीं हूँ, लेकिन हूँ। हूँ न ? अज़न्मी हूँ, पर कभी तो जनोगी ? जनोगी न ? मुझे उस पल का इंतजार है जब मैं भैया की गोद में खेलूंगी। क्या हुआ ? परेशानहो गयीं ? चलो इसे भी छोडो। कुछ लोगों के मुकद्दर में केवल खयाली जन्म होता है। सागर के ख्यालों में तो मैं पैदा हो ही चुकी हूँ। ये क्या कम है ?
बस एक सवाल और ! प्यार क्या है ? वो जो तुम पा से करती हो ? या वो जो मैं सागर से करती हूँ ? या जो पा बड़ी माँ से करते हैं ? या सागर अपने मैं से करते हैं ? कभी सोचा है ?
मम्मा, आप अकेले होती हैं तो क्या सोचती हैं ? किसके बारे में (सागर के अलावा) सबसे ज्यादा सोचती हो ? तुम्हें सबसे ज्यादा नफरत (सागर के अलावा) किस से है ? ज़रूर बताना। लव यू।

सबहिं नचावत राम गुसाईं

आवाज़ से शिलाएं टूटती हैं। ये स्थापित तथ्य है। मौन से विराटता बढती है। ये भी स्थापित तथ्य है। यानि बोलते रहेंगे तो क्रोध के ग्लेशियर भी अंततः पिघल जायेंगे। नहीं बोलेंगे तो तिल का ताड़ बन जायेगा। मम्मा, आप बड़ी चतुर हैं। जो आपका दिल चाहता है वही रास्ता अख्तियार कर लेती हैं। आप ये भी जानती हैं कि आप असली गुसाईं हैं........और इतना तो हम भी जानही गये हैं कि सबहिं नचावत राम गुसाईं।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मैं नासमझ

मम्मा, एक बात तो माननी पड़ेगी....किस्मत हो तो पापा जैसी। कितनी आज्ञाकारी और प्यार करने वाली पत्नी मिली है। वे आपकी जिंदगी में जलालत के कितने भी सफे जोड़ दें, आपकी मोहब्बत में रंचमात्र भी कमी नहीं आएगी। काश! उन्हें इस मोहब्बत की क़द्र होती। मुझे सचमुच हैरानी होती है कि जो शख्स भैया को हराम की औलाद ( माफ़ करना पर सच तो यही है) कहता है उसके पहलू में आप इतनी खुश कैसे रह लेती हैं। निस्संदेह आप दोनों के बीच जुडाव का कोई ऐसा तंतु ज़रूर है जिसे मैं देख नहीं पाती या देख कर भी समझ नहीं पाती। खैर। गुड नाईट !

बुधवार, 14 जुलाई 2010

आई लव यू मम्मा

मम्मा, सागर आपके साथ नहीं हैं....न रहने दो...मैं हूँ न। आप बिलकुल सही हैं। जो कर रहीं हैं वही सही है। दरअसल सब लोग आपको पापा से दूर करना चाहते हैं। आप इनके बहकावे में मत आना। ये सब अपना उल्लू सीधा करने वाले लोग हैं। मतलबी, स्वार्थी और मौकापरस्त। पापा कितने अच्छे हैं....आप से कितना प्यार करते हैं ..... जब भी बड़ी माँ के पास से आते हैं आपको कितना प्यार करते हैं। बाज़ार ले जाते हैं। बढ़िया-बढ़िया खाना खिलाते हैं। मीठी-मीठी बातें करते हैं। आप जैसी पति-परायणाको और चाहिए भी क्या ? आप मुझे रामायण सुनाती हैं। राजा दशरथ के भी तो तीन पत्नियाँ थीं....तो मेरे पापा क्या किसी राजा से कम हैं....वे क्या दो बीबियाँ भी नहीं रख सकते ? जब आपको कोई एतराज़ नहीं तो और किसी की मजाल ही क्या ? मैं तो कहती हूँ कि पापा को इतना इंतजार क्यों करवा रही हो ? बुला क्यों नहीं लेती बड़ी माँ को....ऐसा करते हैं अपन दोनों चलते हैं बड़ी माँ को लेने। वे मेरी मनुहार ज़रूर मानेंगी। फिर हम चारो लोग खूब धमाल करेंगे। पापा को बड़ी माँ के पास सुलाकर हम दोनों खूब मस्ती करेंगे। कितना मज़ा आएगा। सागर को मैं मना कर दूंगी कि अब आपको हमारे घर आए की कोई ज़रुरत नहीं। ठीक है न ? अब बेफिक्र होकर सो जाओ। आई लव यू मम्मा ! गुड नाईट....टेक केयर.

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

मेरा साया साथ होगा

कुछ न कहने से भी छिन जाता है ऐजाज़े सुखन
ज़ुल्म सह के भी ज़ालिम की मदद होती है।
यकीनन आपको इस पर यकीन नहीं है..... देवता कभी ज़ालिम होते ही नहीं हैं। वे तो सदा-सर्वदा महान ही होते हैं। आपका देवता भी ऐसे ही महान लोगों में शुमार है। मैं गलत हूँ....घर वाले गलत हो सकते हैं लेकिन देवता गलत नहीं हो सकता। वो तो बहुत मासूम है...बहुत भोला... । जो बातें उसे ठेस पहुंचाती हैं वे अंततः आपको भी तकलीफ देने लगती हैं। उसका दुश्मन आपका दुश्मन। आपके दोस्त तो आपके दुश्मन हैं ही। चलो ऐसे ही सही। चल के देख लो। ज़हां तक चल सको .... मुबारक ! जब राहें हमवार न रहें....जब देवता का दैत्य सर चढ़कर बोलने लगे .... जब किसी अपने की जरूरत महसूस हो ....तब...मुझे याद भी मत करना...मैं तुम्हारे पास ही हूँ...पास भी और साथ भी। तू ज़हां-ज़हां चलेगी.....मेरा साया साथ होगा।

अच्छा हुआ जो आपने सपने चुरा लिए

शरण गीता की हो, ईश्वर की हो या अपने ही गढ़े गये किसी मिथक की। शरणम गच्छामि होते ही हम अपने नहीं रहते। असल तकलीफ जो है वो अपने न रहने की ही है। अपने रहे नहीं ... दूसरे के हुए नहीं ! त्रिशंकु होकर अटक गये कहीं। कहाँ ? पता नहीं। सोंपना चाहा किसी को ...... लेकिन ग्रहण के बिना अर्पण नहीं होता। अब सब से पहले ग्रहीता को तलाशिये। है कोई ? नहीं ? तो ये फालतू के पचड़े छोडिये... जीवन को अपनी गति से प्रवाहित होने दीजिये....अंततः वह अपनी गति को प्राप्त कर ही लेगा। कितना आसान फंडा है ! है न ? काश ऐसा होता। हम सबको अवसर अवश्य मिलता है। मुझे भी मिले। खूब मिले। खुद पर घमंड हो गया....इतराने लगा....जिंदगी में ऐसे लोग भी मिले जिन्हें यह इतराना भला लगता था। यही भारी गडबडी हो गयी। आवक में इतना भूला कि जावक को देखा ही नहीं। जब देखा तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी। कोई चारा न था। बे-चारा हो गया. बेचारगी बहुत बुरी चीज़ है। मेरा नसीब कि ये बुरी चीज़ मेरे हिस्से थोक में आई है।

हो सकता है ये सच न हो...पर मैं ऐसा मानता हूँ कि मैं मूलतः उत्सवधर्मी और स्वप्नजीवी हूँ। अब मेरी दिक्कत समझो.... कोई भी उत्सव अपनों के बिना मुकम्मल नहीं होता। अपने अचानक विराने हो गये। जुडाव का कोई बारीक सा तार है भी तो वह तंतुओं को झनझनाता नहीं है....कशिश पैदा नहीं करता....उद्दाम नदी की तरह मिलने को आकुल नहीं होता। यानी उत्सव नहीं हो सकता। जीने की एक आदत फिनिश्श्श। सपने अलबत्ता अब भी खूब देखता हूँ। यह नितांत निजी शगल है... इसके लिए किसी की जरूरत नहीं होती। क्या होगा ? पूरे ही तो नहीं होंगे...न सही.....जब जिंदगी ही मुकम्मल न हुई तो अधूरे सपनो के साथ रहना क्या मुश्किल ? लेकिन बड़ी गलती हो गयी...मैं लापरवाह था... कोई आया और मेरी सपनो वाली गठरी ही चुरा ले गया। अब क्या करूँ ? न सपने रहे...न अपने रहे....न उत्सव । कैसे कहूँ कि शुभ-हो। वैसे - ' रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर/ अच्छा हुआ जो आपने सपने चुरा लिए।

सोमवार, 12 जुलाई 2010

दाल का पानी

आज भैया ने पहली बार दाल का पानी पिया। उसे तो मज़ा आ गया होगा इस नये स्वाद से। आज उसके मम्मा-पापा दोनों दिन भर उसके साथ रहे। और क्या चाहिए। बधाई हो भैया। आई लव यू।

कि हमसे दूर हो गये

अकेले रहने और अकेलेपन की ताकत को पहचानें। हम अकेले हैं तो इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि हम मजबूत नहीं हैं।
मुबारकें तुम्हें कि तुम, किसी का नूर हो गये
किसी के इतने पास हो कि हमसे दूर हो गये।

रविवार, 11 जुलाई 2010

अफ़सोस हम न होंगे

जिंदगी कितनी अजीब होती है! जो न चाहो वो तपाक से हो जाता है.... जिसे टूट कर चाहो वो तोड़कर अपने रस्ते चल देता है। आप तांगे के घोड़े की तरह बेसबब दौड़ते चले जाते हैं....अजानी राह पर...अचीन्ही मंजिल के लिए। यही है जिंदगी....! कभी-कभी मन हिसाबी होना चाहता है.... । देखने को मन करता है...क्या खोया , क्या पाया? तब पता चलता है , था क्या जो खो दोगे ? है क्या जो पा लोगे ? एक दिन मैं हबीब तनवीर और हैदर रज़ा के साथ बैठी थी हबीब साब ने रज़ा से कहा- मियां तुम शून्य बनाते हो, हम भरते हैं। रज़ा ने कहा सही वक्त पर ज़वाब दूंगा। हबीब साहेब की मौत पर अनायास ही लिखा था- मियां तुम जो शून्य बना गये हो उसे कौन भरेगा? आज न कोई हबीब को याद करता है न रज़ा को। किसी रोज़ जिंदगी हमें भी खारिज कर देगी। क़िताब के फटे हुए पन्ने या पतझर के पत्ते की तरह उड़ा ले जाएगी हवा। ......ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे....अफ़सोस हम न होंगे।

मुबारक हो माँ

ठीक दो साल पहले.....आज ही के दिन यानी ११ जुलाई २००८ को आपका विवाह हुआ था। बहुत-बहुत बधाई। मुझे मालूम है आप ये पोस्ट तब तक नहीं पढ़ेंगी जब तक कोई पढ़ायेगा नहीं। मैं इस बात से सचमुच बहुत खुश हूँ कि विवाह की दूसरी सालगिरह पर आप पूरे दिन मुस्कराती रहीं। आप ऐसे ही अच्छी लगती हैं। सदा हंसती रहो....मुस्कराती रहो...! आपकी ये ख़ुशी देखकर नानू भी बड़े प्रसन्न हैं। पापा तो खुश हैं ही.....नानू से निजात जो मिल गयी है। आप खुश ....पापा खुश... नानू खुश... मैं खुश ...... और क्या चाहिए ?

सोमवार, 31 मई 2010

पिया का घर प्यारा लगे !

बाबुल मेरो नैहर छूटो ही जाय........! मम्मा जा रही हो, हमे भूल मत जाना। बेशक पिया का घर प्यारा लगे पर जहाँ बचपन बीता वो जगह कभी नहीं भूल सकतीं। भैया को ननिहाल कि बहुत यद् आएगी। आपके घर में तो कोई उसे घंटो तक गोद में लेकर खिला भी नहीं सकता। खैर ! तुमने आज पूरे दिन बात नहीं की। चलो माफ़ किया तुम्हारे पिया जो आये थे। मम्मा, अब नई जिंदगी शुरू करो.....अपनी जिंदगी.....अपनी तरह की जिंदगी... जिसको सुहाए, आ जाये....नहीं सुहाए, भाड़ में जाये। करोगी ? नहीं करोगी.......मुझे पता है तुम ऐसा कर ही नहीं सकतीं। कोई बात नहीं तुम जिस में खुश रहो मैं तो उसी में राज़ी... आई लव यूं टू मच मम्मा.....!

शनिवार, 29 मई 2010

आ अब लौट चलें !

मम्मा,
उरई प्रवास का कल आखिरी दिन है। कल पापा के साथ हम लोग घर चलेंगे। आप फिर अकेली हो जाएँगी। है न ? यही सच है ? मेरे होने का कोई मतलब नहीं ? ऐसा कब होगा कि मुझे अपने पास पाकर आपको सकल ज़हान अपनी मुट्ठी में लगे। मुझे छूती हो तो पुलकन होती है न ? मुझे बांहों में समेटती हो तो ऐसा नहीं लगता मानो पूरा आसमान मुट्ठी में आ गया हो ? हमारी दुनिया सबसे न्यारी और सबसे प्यारी है माँ...... मैं हूँ ... तुम हो ... पापा हैं ...और क्या चाहिए ? सागर कितने गंदे हैं .... जब देखो बिना बात के मुंह फुला लेते हैं ... अब हम उनसे भी कोई मतलब नहीं रखेंगे ...! ठीक ? चलो अब अच्छी माँ कि तरह मुझे सुलाओ .... सुबह जल्दी उठाना भी तो है ..... । नहीं तो पापा कहेंगे आलसी हो गया है उल्लू का नाती। गुड नाईट ।

बुधवार, 19 मई 2010

पहली पलटी

मम्मा, आज भैया ने पहली बार पलटी खाई। आपको खुश देखकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई। आपने अपनी ख़ुशी में सबको शरीक किया ------- सागर को छोडकर। क्यों? उन्होंने क्या गुनाह कर दिया ? उन्हें बताना भी ज़रूरी नहीं लगा आपको ? कोई शख्स एक पल में इतना गैर ज़रूरी कैसे हो जाता है ? और हाँ, आपको झूठी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। कोई हो न हो, मैं तो हमेशा उनके पास रहूंगी ही। मेरा उनका रिश्ता ही ऐसा है....... दर्द का रिश्ता ! ...... आप नहीं समझोगी .... जरूरत भी क्या है समझने की। नमस्ते !

सोमवार, 3 मई 2010

तुम्हारी कामना

कल तलक जो नाव था, पतवार था, साहिल भी था।
आज रो - रो के कहता है बचा लो मुझको !
मुम्मा, सब कुछ इतना बदल क्यों जाता है ? हम जाना कहीं चाहते हैं, पहुँच कहीं जाते हैं। जो चाहो वो मिलता नहीं। अयाचित जो मिलता है वह अभीष्ट नहीं होता। जो काम्य है वह अप्राप्य है। जो हस्तगत है वह अकम्य है। पा की कामना कुछ भी हो मैं तो नहीं ही हूँ। तुम्हारी कामना का तो पता ही नहीं चलता। तुम अनुपम तो सदा से थीं अब अनुपम मयी भी हो gyi हो। badhai.

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

मुझे भी लाओ न !

पुलकित भैया रोते कितना हैं ? आप तो कहती थीं बिलकुल भी नहीं रोते। ये तो एकदम पिन्ने हैं। देखना, मैं आउंगी तो बिलकुल नहीं रोउंगी। पर मैं आउंगी कब ? मुझे भी जल्दी लाओ न !

सोमवार, 22 मार्च 2010

स्वागतम पुलकित

४६० घंटे हो गये हैं भैया के अवतरण को। अबकी बार मुझे जरूर लाना। २७६०० सेकेण्ड आप उनके साथ रह लीं। यह वक्फा कम नहीं होता। पुलकित की पुलकन से मैं पुलक उठती हूँ तो आप जो हर पल उसे सहेजती हैं कितना सुख महसूस करती होंगी। मैं जब तक आउंगी तब तो वो मुझे खिलाने लायक हो जायेगा। जिंदगी को समझ पाना कितना मुश्किल होता है। खुद को ही देख लीजिये, खूब परेशां होती हैं, झुंझलाती हैं, रोती हैं, मगर इन सबके बाद जो सुख, महिमा और गौरव मिलता है वह दुनिया की और किसी भी अनुभूति में नहीं है। सागर याद आते हैं ? पुलकित भैया को उनके बारे में बताती हो या नहीं ? ऐसा न हो कि वे आयें तो भैया उन्हें पहचाने भी नहीं। इसे बिलकुल अपने जैसा बनाना, लेकिन अपना सब्र मत देना। समझोतावादी तो बिलकुल भी न बनाना। जी चाहता है इसी पल आपके पास पहुँच जाऊं। काश ऐसा हो पाता। उसे मेरा और सागर का ढेर सारा प्यार देना।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

आप तो ऐसी न थीं

बहुत नाइंसाफी है, आपको कितने दिन से मेरा ब्लॉग देखने की फुर्सत नहीं मिली। आप तो ऐसे न थे। आज मिहोना में शादी है, बहुत बोरियत हो रही है, आपको क्या!

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

सोचना तो सही!

मम्मा ! जिंदगी कितनी अनुपम है! सब कुछ वक़्त के हाथ में। वक़्त से बड़ा हाकिम कोई नहीं। वक़्त जब अनुकूल हो तो प्रतिकूल लोग भी कितने अपने से लगने लगते हैं। जो अनुकूल होते हैं वे हाशिये पर भेज दिए जाते हैं। लेकिन होने और लगने में फर्क तो होता है न ? जो होता है वह दीखता नहीं ---- जो दीखता है वह होता नहीं। लेकिन जिंदगी में मिराज़ न हों तो हम शायद खुश रहना ही भूल जाएँ। वक़्त का क्या ठिकाना! कभी किसी का सगा नहीं होता। हाँ, इतना तय है जो कल था वह आज नहीं --- जो आज है वह भी कल नहीं होगा। ऐसे ही किसी कल में हम और आप भी नहीं होंगे। रोजे महशर हम शर्मिंदा न हों इसके लिए ज़रूरी है हर रिश्ते को उसका पावना देना। कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐसा कर पाने में जाने- अनजाने कहीं कोई चूक हो रही हो। सोचना तो सही!

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

आओ हम जश्न मनाएं!

कैसी हो गयी हो मम्मा आप? इतना अधैर्य ? इतनी अकुलाहट ? इतनी उत्तेजना ? लगता है मेरी मम्मा तो कहीं खो गयी। वापस आ जाओ माँ! फिर पहले जैसी हो जाओ। मेरे आने का वक़्त हो रहा और तुम बेवज़ह परेशान हो रही हो। मुझे आ जाने दो। मैं तुम्हे इतना सुख दूंगी जितना तुमने सपने में भी नहीं सोचा होगा। जीवन में बहुत कुछ अनचाहा होता है। वो हमें दुःख देता है। इसी अनचाहे के बीच सुख के क्षण भी हम तक आ ही जाते हैं। कई बार जो अनचाहा होता है वही जीवन की सबसे बड़ी नियामत बन जाता है। तुम्हारे साथ भी तो यही हुआ। ईश्वर ने सब कुछ दे दिया। अब उसका शुक्रिया अदा करने के बजाय उस से शिकवा क्यों? आओ हम जश्न मनाएं! आई लव यू मम्मा!

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

आई लव यूं !

मम्मा, बहुत ही अच्छा लगा ये जानकर कि आप मेरा ब्लॉग देख रही हैं। आप बहुत ही अच्छी हैं। आप रोज पढ़ोगी तो रोज लिखा भी जायेगा। प्रोमिस!
----- क्या अबके बरस सचमुच वसंत नहीं आया। मुझे तो लगा इस बार वसंत ज्यादा मन और मान से आया। सुबह से शाम तक तो बगरा रहा वसंत। दिन और रात हर पल साथ रहे कंत। आनंद अनंत। तुम ऐसे ही खुश रहा करो। तुम प्रफ्फुल्लित रहती हो तो मुझे भी भला लगता है। हमारे जीवन में कुछ ऐसा भी होता जिसे कहा नहीं जा सकता. हम चाहते हैं कि उस अनकहे को कोई समझ ले। ऐसा हो जाता है तो हम खुश हो लेते हैं। नहीं हो पाता है तो उदास हो जाते हैं। दोनों ही मिलते किसी अपने से ही हैं। बड़ी या अहम बात यह नहीं है कि हम खुश हैं या उदास। असल बात यह है कि हमारे जीवन में कोई अपना है या नहीं! तुम कितनी खुशकिस्मत हो कि तुम्हारे जीवन में इतने सारे अपने हैं। और मैं भी खुशनसीब हूँ जो तुम मेरी इतनी अपनी हो। और क्या चाहिए? तुम हो ! पा हैं! मैं भी आने वाली हूँ। हम तीनों खूब खुश रहा करेंगे। देखना मैं तुम्हें पल भर को भी उदास नहीं होने दूंगी। वादा!

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

त्रासदी

जिन्दगी कब, कैसे, कितनी बदल जाती है पता ही नहीं चलता। जो सब कुछ होता है वह कुछ भी नहीं रहता। बहुत कुछ से कुछ भी नहीं तक का सफ़र बड़े अजीबोगरीब ढंग से तय होता है। यह सफ़र बहुत त्रासद भी होता है। बहुत सुखद भी, बहुत कष्टप्रद भी। आज मैं जहाँ हूँ वहां क्यों हूँ ? जहाँ नहीं हूँ वहां क्यों नहीं हूँ ? ये सवाल जिंदगी भर परेशान करते हैं. फिर भी हम इनका उत्तर नहीं तलाश पाते। हम अक्सर खुद से ही हारते हैं। कोई दूसरा हमें हराता नहीं , हाँ हमारी हार पर खुश ज़रूर हो सकता है। उन्हें बधाई जो आज खुश हैं। लेकिन उन्हें भी याद रहे कि हारा हुआ खिलाड़ी भले ही कभी न जीते पर विजेता हमेशा विजेता नहीं रह सकता। एक न एक दिन उसे भी हारना ही होता है। आमीन!

सोमवार, 18 जनवरी 2010

दर्द का रिश्ता !

छीजना तो जानती हैं न आप? धीरे-धीरे सब कुछ ख़त्म हो जाता है। हाथ में रह जाता है केवल खालीपन। रिश्ता भी ऐसे ही छीजता है। पहले आप मुझे कितना कुछ बताती थीं। करीब-करीब सब कुछ। कब सोकर उठीं। कब चाय पी। कब साहेब गये। कब आये। कब नहाया। कब शेविंग की। कब खाया। एक - एक पल मुझे पता होता था। जागती थीं तो गुड मोर्निंग और सोती थीं तो गुड नाईट कहती ही थीं। अब ऐसा नहीं होता। आज साहेब वापस नहीं आये। लेकिन आपको यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं लगा कि मुझे बता देतीं। तुम्हें लगा होगा कहीं मैं चेंटने न लागुन। आखिर उनका फ़ोन भी तो आना होगा। है न ! कैसे हो जाता ये सब? क्यों बदल जाते हैं सरोकार ? सब अतीत हो गया। ऐसे ही एक दिन एक रिश्ता भी अतीत हो जायेगा। आपको नहीं पता, जब कोई रिश्ता व्यतीत होता है तो कितना दर्द होता है। काश, कभी आप भी इस दर्द को महसूस कर पायें!

रविवार, 17 जनवरी 2010

यही सच है !

देर से ही सही पर समझ में आ गया कि जिंदगी बहुत बेदर्द होती है। न तो किसी के लिए ठहरती है और न ही किसी की पीर को महसूस कर पाती है। आखिर में जो शय आपके साथ होती है वह है आपकी तन्हाई। बुजुर्गों की बात पर बहुत हंसी आती थी कि औरत नरक का द्वार है। त्रिया चरित्र के बारे में बहुत पढ़ा- सुना पर कभी यकीन नहीं हुआ। आज कह सकता हूँ कि हमारे बुजुर्ग सौ प्रतिशत सही थे।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

रेत

मुट्ठी में रेत भरो तो लगता है कुछ हाथ में आ गया। मगर हासिल का यह सुख कितना क्षणभंगुर होता है ? रेत फिसल जाती है। हमें पता भी नहीं चलता। मुट्ठी फिर खाली की खाली। सपने कम से कम तब तक तो अपने होते हैं जब तक टूटते नहीं। और अपने ? अपने तो सपने में भी अपने नहीं रहते। अपनापन ऐसा क्यों होता है ? रीतता क्या है ? मन! वो भी कितने बेमन से। मन इतना बेचारा क्यों होता है ? जहाँ आसरा चाहता है वहां से दुत्कार दिया जाता है। जहां से दवा की उम्मीद होती है वहां से दर्द मिलता है।

ऐसा क्यों होता है ?

मम्मा,
तुमने मेरी सलामती के लिए सूर्य ग्रहण नहीं देखा। लेकिन टीवी पर तो देखा न? चाँद ने सूरज और धरती के बीच आने में कोई कसर तो नहीं छोड़ी! है न ? चाँद का पूरा वजूद दोनों के बीच में आया तो कितना सुन्दर सोने सा छल्ला बन गया ! सूरज और धरती एक पल के लिए एक-दुसरे की आँख से ओझल नहीं हुए। सच्चा प्यार ऐसा ही होता है। तुम भी तो धरती हो। तुम्हारा चाँद सूरज को इतना कैसे ढक लेता है कि वह तुम्हें दिखाई तक नहीं देता?

बुधवार, 6 जनवरी 2010

जन्मदिन मुबारक

मम्मा,
जन्मदिन मुबारक!
तुम बहुत अच्छी हो माँ, सब से अच्छी।
अपने दिल को दुखाया न करो।
मैं हूँ ना!
क्या मेरा होना तुम्हें खुश रखने के लिए पर्याप्त नहीं?
तुम्हारी शुभो।