सोमवार, 18 जनवरी 2010
दर्द का रिश्ता !
छीजना तो जानती हैं न आप? धीरे-धीरे सब कुछ ख़त्म हो जाता है। हाथ में रह जाता है केवल खालीपन। रिश्ता भी ऐसे ही छीजता है। पहले आप मुझे कितना कुछ बताती थीं। करीब-करीब सब कुछ। कब सोकर उठीं। कब चाय पी। कब साहेब गये। कब आये। कब नहाया। कब शेविंग की। कब खाया। एक - एक पल मुझे पता होता था। जागती थीं तो गुड मोर्निंग और सोती थीं तो गुड नाईट कहती ही थीं। अब ऐसा नहीं होता। आज साहेब वापस नहीं आये। लेकिन आपको यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं लगा कि मुझे बता देतीं। तुम्हें लगा होगा कहीं मैं चेंटने न लागुन। आखिर उनका फ़ोन भी तो आना होगा। है न ! कैसे हो जाता ये सब? क्यों बदल जाते हैं सरोकार ? सब अतीत हो गया। ऐसे ही एक दिन एक रिश्ता भी अतीत हो जायेगा। आपको नहीं पता, जब कोई रिश्ता व्यतीत होता है तो कितना दर्द होता है। काश, कभी आप भी इस दर्द को महसूस कर पायें!
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aawashykta se adhik apeksha sambandhon ki madhurta ko ksheen karti hai...smaran rakhen...
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे
जवाब देंहटाएंयकीं मानिये दर्द का रिश्ता ही ताउम्र साथ निभाता है, बाकी रिश्ते तो दर्द देने के लिए ही होते हैं
रत्नेश त्रिपाठी
shubhdaa ji appne jaroor is dard ko saha hi ya dekha hi nahi to koi itni gahrai se sabdon ko nahi piro sakta
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