रविवार, 18 जुलाई 2010

कायम रहे ये मोहब्बत !

आज इतवार था। उम्मीद के मुताबिक आपने दिन और रात का ज्यादातर वक्त अपने कमरे में अपने पति और बेटे के साथ गुजारा। निस्संदेह बहुत आनंद भी आया होगा। बहुत-बहुत बधाई। भगवान ये नजदीकियां हमेशा कायम रखे।
महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है: दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायन् पिता दश। दश चैव पितृन् माता सर्वां वा पृथ्वीमपि। गौरवेणाभिभक्ति नास्ति मातृसमो गुरु:। इसका आशय यह है कि गौरव में उपाध्याय 10 आचार्यों से बड़ा होता है, पिता 10 उपाध्यायों से भी बड़ा होता है, लेकिन माता 10 पिताओं से भी बड़ी होती है। अपने इस गौरव से वह पृथ्वी को भी छोटा कर देती है। माता के समान दूसरा कोई गुरु नहीं है। अब सवाल उठता है कि बेमौसम बरसात क्यों ? यह अप्रासंगिक उल्लेख किसलिए ? चलो ये कहानी फिर सही।
पुरातन काल में प्रायः उन पुत्रों के नाम माँ पर अवलंबित होते थे जिनके पिता का पता नहीं होता था.....यथा जावाल ऋषि । अर्जुन इसके अपवाद थे। उन्हें कौन्तेय के नाम से जाना जाता था। पा भी तो भैया का नाम आपके नाम पर रख रहे थे। भैया अर्जुन हैं या जावाल ?
वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में उल्लेख है कि लंका विजय के बाद जब राम, सीता को वापस लेकर अयोध्या आते हैं, तब कहते हैं कि सुनो, मैंने तुम्हें प्रेमवश नहीं अपितु अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए रावण से छुड़ाया है। अब तुम स्वतंत्र हो। ये धरती तुम्हारी है....ये आसमान तुम्हारा है....दसों दिशाओं में जहां चाहो, जा सकती हो। राम पर कलंक था कि वे अपनी पत्नी को सुरक्षित नहीं रख सके। पा पर भी तो कलंक था। तुमने भैया के जरिये उन्हें कलंकमुक्त कर दिया.....अब अयोध्या ( सच कहें तो लंका ) में तुम्हारा क्या काम ? जहां चाहो, जा सकती हो। यहाँ बड़ी माँ को जो आना है..... पा कब तक धीरज धरेंगे ?
अब एक वाजिब सवाल ? इन हालात के लिए ज़िम्मेदार कौन ? ज़वाबदेह कौन ? अपराधी कौन ? उत्तर असंदिग्ध है- सागर .... सिर्फ और सिर्फ सागर। तुम्हारे विश्वास....तुम्हारी आस्था....और तुम्हारे समर्पण को सच्ची श्रृद्धा के साथ ह्रदय से नमन। अभिनन्दन। सागर की लहरों पर तुम पूरे भरोसे से बहती रहीं.... नतीजे में मिला रसातल। सागर की शर्म मैं जानती हूँ लेकिन इस से उनका अपराध कम नहीं होता।
सागर आपको प्यार करते हैं ? आपको शायद यकीन न हो लेकिन सच यही है कि बे-इन्तेहाँ प्यार करते हैं। प्यार है क्या ? जैसे मां भी प्यार करती है और पिता भी प्यार करता है। पति-पत्नी एक -दूसरे को प्यार करते हैं। हममें से कुछ लोग ईश्वर को प्यार करते हैं। ये सभी अपने-अपने लगाव को प्यार का श्रेष्ठतम रूप बताते हैं, लेकिन ये सब एक जैसे तो नहीं होते। कुछ फर्क होता है। वह फर्क कैसा होता है? मसलन, मां का प्यार अनकंडिशनल होता है, लेकिन पिता का प्यार कंडिशनल होता है। यानी तुम्हारे लिए मेरा प्यार उपलब्ध है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। तुम वे शर्तें पूरी करोगे, तभी मेरा वह प्यार प्राप्त कर सकोगे। दो प्रेमियों का प्यार वस्तुतः छलावा होता है। अक्सर तो वह होता ही नहीं है। मेरा प्यार अनंत है.... शायद सागर का भी। सच-सच बताना मम्मा, आज की तारीख में तुम भैया के अलावा और किसे प्यार करती हो ?
एक कहावत है - ' डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को जमीन छिपा लेती है।' इसी तरह चेखब ने लिखा है - 'डॉक्टर ज्यादातर मायनों में लुटेरों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फर्क यह होता है कि वे सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। मुझे पहले ये बातें समझ में नहीं आती थीं...... अब आने लगी हैं। तुम भी तो जमीन ही हो।
एक हिदायत यह भी दी जाती है कि - 'जो शख्स तुम्हारी ' निगाह ' से तुम्हारी जरूरत को समझ नहीं सकता , उस से कुछ मांग कर खुद को ' शर्मिंदा ' न करो।' यार मम्मा, अगर यह सच है तो आप और सागर तो कभी एक- दूसरे की ज़रूरत समझ ही नहीं पाएंगे.... जब दोनों एक-दूसरे से मिलोगे ही नहीं तो निगाह क्या खाक समझोगे ? वैसे मम्मा, एक बात के लिए सागर की दाद देनी पड़ेगी। कहते हैं कि अगर आपको पता चल जाए कि आप रेस हार चुके हैं और लोग विजेता के लिए तालियां बजा रहे हैं, उसके बाद भी दौड़ते रहना सचमुच हिम्मत की बात है। सागर यह हिम्मत तो दिखा ही रहे हैं..... और कमाल की दिखा रहे हैं। है न ? पता है आज मैंने उनसे क्या कहा ? मैंने कहा, ' अगर तुम मम्मा से प्यार करते हो तो उन्हें आज़ाद छोड़ दो। अगर वे तुम्हारी हैं (यानी तुमसे प्यार करती हैं ) तो तुम्हारे पास लौट आएँगी । अगर नहीं तो (अफसोस की बात नहीं क्योंकि) वह तुम्हारी थी ही नहीं। एक बार अपनी पारो को छूट देकर देखिए। पिंजरे का दरवाज़ा खोल दीजिए और देखिए कि क्या वह बाहर आकर भी आपके आसपास ही मंडराती है? यकीन मानिए, पिंजरे से बाहर आने के बावजूद जब वह कहीं और नहीं जाएगी तो उसके साथ रहने का आपका आनंद सौ गुना हो जाएगा। और अगर वह चली भी गई तो भी अच्छा ही है क्योंकि आपका भ्रम दूर होगा। आपको पता चल जाएगा कि जिस पंछी को आपने अपना समझकर पिंजरे में बंद करके रखा था, वह आपके साथ नहीं रहना चाहता था। और किसी को जबरदस्ती साथ रखने का न कोई मतलब है न ही आनंद।' मम्मा, ठीक कहा न मैंने ?

शनिवार, 17 जुलाई 2010

व्हिच थिंग इस मिसिंग ?

लडकियाँ अलग-अलग। उम्र भी अलग। माहौल और क्लास भी अलग। तीनो की शादी का वक्फा और पतियों का पेशा भी अलग। मिजाज़ तो खैर अलग-अलग होने ही थे। फिर भी एक एहसास तीनो को बिलकुल एक जैसा....... क्या ? यह कि सब कुछ बहुत शानदार है मगर फिर भी ........समथिंग इज मिसिंग.....! यह जो मिस है...यानी खो गया है... या खो सा रहा है वह बड़ा कन्फयूजिंग है......! यार मम्मा , इन तीनो लडकियों को ये क्यों लगता है कि इनका मैं खो गया है ? ये तीन अकेली नहीं हैं....इन जैसी जाने कितनी हैं.... उनका भी समथिंग मिस हो गया है। क्यों मिस हो गया ? कहाँ खो गया ? क्या सोचा था ? यह कि शादी के बाद ' दो इकाई गुना हो इकाई हुईं , धीरे - धीरे निलंबित हुईं दूरियां' जैसा कुछ नहीं करेंगे ? मैं को तिरोहित नहीं किया फिर भी विलेन हो गये पिया ?
उस शख्स की सोचो जिसका मैं भी गया और मज़ा भी नहीं आया। बहुत कुछ मिल जाये तो बहुत कुछ खो जाने का रोना रोने का शगल कितना दिलचस्प हो जाता है ?

कभी तो जनोगी ?

कहो अम्मा, कैसी हो ? आज शनिवार है। पापा के साथ बिजी हो। कल सन्डे है। यानी कल भी फुर्सत नहीं होगी। सोमवार को शायद.... जी हाँ, शायद सोमवार को आप इसे पढ़ लें....या जब भी पढ़ें , एक बात ज़रूर बताइयेगा.... अब जबकि वैज्ञानिकों ने यह तय कर दिया है कि पहले मुर्गी आई थी अंडा बाद में आया , अंडा क्या करे ? शर्म से डूब मरे ?
सवाल शायद हजम नहीं हुआ ! कोई बात नहीं। दूसरा सवाल सुनो। (पढो)। मैं कहीं नहीं हूँ, लेकिन हूँ। हूँ न ? अज़न्मी हूँ, पर कभी तो जनोगी ? जनोगी न ? मुझे उस पल का इंतजार है जब मैं भैया की गोद में खेलूंगी। क्या हुआ ? परेशानहो गयीं ? चलो इसे भी छोडो। कुछ लोगों के मुकद्दर में केवल खयाली जन्म होता है। सागर के ख्यालों में तो मैं पैदा हो ही चुकी हूँ। ये क्या कम है ?
बस एक सवाल और ! प्यार क्या है ? वो जो तुम पा से करती हो ? या वो जो मैं सागर से करती हूँ ? या जो पा बड़ी माँ से करते हैं ? या सागर अपने मैं से करते हैं ? कभी सोचा है ?
मम्मा, आप अकेले होती हैं तो क्या सोचती हैं ? किसके बारे में (सागर के अलावा) सबसे ज्यादा सोचती हो ? तुम्हें सबसे ज्यादा नफरत (सागर के अलावा) किस से है ? ज़रूर बताना। लव यू।

सबहिं नचावत राम गुसाईं

आवाज़ से शिलाएं टूटती हैं। ये स्थापित तथ्य है। मौन से विराटता बढती है। ये भी स्थापित तथ्य है। यानि बोलते रहेंगे तो क्रोध के ग्लेशियर भी अंततः पिघल जायेंगे। नहीं बोलेंगे तो तिल का ताड़ बन जायेगा। मम्मा, आप बड़ी चतुर हैं। जो आपका दिल चाहता है वही रास्ता अख्तियार कर लेती हैं। आप ये भी जानती हैं कि आप असली गुसाईं हैं........और इतना तो हम भी जानही गये हैं कि सबहिं नचावत राम गुसाईं।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मैं नासमझ

मम्मा, एक बात तो माननी पड़ेगी....किस्मत हो तो पापा जैसी। कितनी आज्ञाकारी और प्यार करने वाली पत्नी मिली है। वे आपकी जिंदगी में जलालत के कितने भी सफे जोड़ दें, आपकी मोहब्बत में रंचमात्र भी कमी नहीं आएगी। काश! उन्हें इस मोहब्बत की क़द्र होती। मुझे सचमुच हैरानी होती है कि जो शख्स भैया को हराम की औलाद ( माफ़ करना पर सच तो यही है) कहता है उसके पहलू में आप इतनी खुश कैसे रह लेती हैं। निस्संदेह आप दोनों के बीच जुडाव का कोई ऐसा तंतु ज़रूर है जिसे मैं देख नहीं पाती या देख कर भी समझ नहीं पाती। खैर। गुड नाईट !

बुधवार, 14 जुलाई 2010

आई लव यू मम्मा

मम्मा, सागर आपके साथ नहीं हैं....न रहने दो...मैं हूँ न। आप बिलकुल सही हैं। जो कर रहीं हैं वही सही है। दरअसल सब लोग आपको पापा से दूर करना चाहते हैं। आप इनके बहकावे में मत आना। ये सब अपना उल्लू सीधा करने वाले लोग हैं। मतलबी, स्वार्थी और मौकापरस्त। पापा कितने अच्छे हैं....आप से कितना प्यार करते हैं ..... जब भी बड़ी माँ के पास से आते हैं आपको कितना प्यार करते हैं। बाज़ार ले जाते हैं। बढ़िया-बढ़िया खाना खिलाते हैं। मीठी-मीठी बातें करते हैं। आप जैसी पति-परायणाको और चाहिए भी क्या ? आप मुझे रामायण सुनाती हैं। राजा दशरथ के भी तो तीन पत्नियाँ थीं....तो मेरे पापा क्या किसी राजा से कम हैं....वे क्या दो बीबियाँ भी नहीं रख सकते ? जब आपको कोई एतराज़ नहीं तो और किसी की मजाल ही क्या ? मैं तो कहती हूँ कि पापा को इतना इंतजार क्यों करवा रही हो ? बुला क्यों नहीं लेती बड़ी माँ को....ऐसा करते हैं अपन दोनों चलते हैं बड़ी माँ को लेने। वे मेरी मनुहार ज़रूर मानेंगी। फिर हम चारो लोग खूब धमाल करेंगे। पापा को बड़ी माँ के पास सुलाकर हम दोनों खूब मस्ती करेंगे। कितना मज़ा आएगा। सागर को मैं मना कर दूंगी कि अब आपको हमारे घर आए की कोई ज़रुरत नहीं। ठीक है न ? अब बेफिक्र होकर सो जाओ। आई लव यू मम्मा ! गुड नाईट....टेक केयर.

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

मेरा साया साथ होगा

कुछ न कहने से भी छिन जाता है ऐजाज़े सुखन
ज़ुल्म सह के भी ज़ालिम की मदद होती है।
यकीनन आपको इस पर यकीन नहीं है..... देवता कभी ज़ालिम होते ही नहीं हैं। वे तो सदा-सर्वदा महान ही होते हैं। आपका देवता भी ऐसे ही महान लोगों में शुमार है। मैं गलत हूँ....घर वाले गलत हो सकते हैं लेकिन देवता गलत नहीं हो सकता। वो तो बहुत मासूम है...बहुत भोला... । जो बातें उसे ठेस पहुंचाती हैं वे अंततः आपको भी तकलीफ देने लगती हैं। उसका दुश्मन आपका दुश्मन। आपके दोस्त तो आपके दुश्मन हैं ही। चलो ऐसे ही सही। चल के देख लो। ज़हां तक चल सको .... मुबारक ! जब राहें हमवार न रहें....जब देवता का दैत्य सर चढ़कर बोलने लगे .... जब किसी अपने की जरूरत महसूस हो ....तब...मुझे याद भी मत करना...मैं तुम्हारे पास ही हूँ...पास भी और साथ भी। तू ज़हां-ज़हां चलेगी.....मेरा साया साथ होगा।

अच्छा हुआ जो आपने सपने चुरा लिए

शरण गीता की हो, ईश्वर की हो या अपने ही गढ़े गये किसी मिथक की। शरणम गच्छामि होते ही हम अपने नहीं रहते। असल तकलीफ जो है वो अपने न रहने की ही है। अपने रहे नहीं ... दूसरे के हुए नहीं ! त्रिशंकु होकर अटक गये कहीं। कहाँ ? पता नहीं। सोंपना चाहा किसी को ...... लेकिन ग्रहण के बिना अर्पण नहीं होता। अब सब से पहले ग्रहीता को तलाशिये। है कोई ? नहीं ? तो ये फालतू के पचड़े छोडिये... जीवन को अपनी गति से प्रवाहित होने दीजिये....अंततः वह अपनी गति को प्राप्त कर ही लेगा। कितना आसान फंडा है ! है न ? काश ऐसा होता। हम सबको अवसर अवश्य मिलता है। मुझे भी मिले। खूब मिले। खुद पर घमंड हो गया....इतराने लगा....जिंदगी में ऐसे लोग भी मिले जिन्हें यह इतराना भला लगता था। यही भारी गडबडी हो गयी। आवक में इतना भूला कि जावक को देखा ही नहीं। जब देखा तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी। कोई चारा न था। बे-चारा हो गया. बेचारगी बहुत बुरी चीज़ है। मेरा नसीब कि ये बुरी चीज़ मेरे हिस्से थोक में आई है।

हो सकता है ये सच न हो...पर मैं ऐसा मानता हूँ कि मैं मूलतः उत्सवधर्मी और स्वप्नजीवी हूँ। अब मेरी दिक्कत समझो.... कोई भी उत्सव अपनों के बिना मुकम्मल नहीं होता। अपने अचानक विराने हो गये। जुडाव का कोई बारीक सा तार है भी तो वह तंतुओं को झनझनाता नहीं है....कशिश पैदा नहीं करता....उद्दाम नदी की तरह मिलने को आकुल नहीं होता। यानी उत्सव नहीं हो सकता। जीने की एक आदत फिनिश्श्श। सपने अलबत्ता अब भी खूब देखता हूँ। यह नितांत निजी शगल है... इसके लिए किसी की जरूरत नहीं होती। क्या होगा ? पूरे ही तो नहीं होंगे...न सही.....जब जिंदगी ही मुकम्मल न हुई तो अधूरे सपनो के साथ रहना क्या मुश्किल ? लेकिन बड़ी गलती हो गयी...मैं लापरवाह था... कोई आया और मेरी सपनो वाली गठरी ही चुरा ले गया। अब क्या करूँ ? न सपने रहे...न अपने रहे....न उत्सव । कैसे कहूँ कि शुभ-हो। वैसे - ' रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर/ अच्छा हुआ जो आपने सपने चुरा लिए।

सोमवार, 12 जुलाई 2010

दाल का पानी

आज भैया ने पहली बार दाल का पानी पिया। उसे तो मज़ा आ गया होगा इस नये स्वाद से। आज उसके मम्मा-पापा दोनों दिन भर उसके साथ रहे। और क्या चाहिए। बधाई हो भैया। आई लव यू।

कि हमसे दूर हो गये

अकेले रहने और अकेलेपन की ताकत को पहचानें। हम अकेले हैं तो इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि हम मजबूत नहीं हैं।
मुबारकें तुम्हें कि तुम, किसी का नूर हो गये
किसी के इतने पास हो कि हमसे दूर हो गये।

रविवार, 11 जुलाई 2010

अफ़सोस हम न होंगे

जिंदगी कितनी अजीब होती है! जो न चाहो वो तपाक से हो जाता है.... जिसे टूट कर चाहो वो तोड़कर अपने रस्ते चल देता है। आप तांगे के घोड़े की तरह बेसबब दौड़ते चले जाते हैं....अजानी राह पर...अचीन्ही मंजिल के लिए। यही है जिंदगी....! कभी-कभी मन हिसाबी होना चाहता है.... । देखने को मन करता है...क्या खोया , क्या पाया? तब पता चलता है , था क्या जो खो दोगे ? है क्या जो पा लोगे ? एक दिन मैं हबीब तनवीर और हैदर रज़ा के साथ बैठी थी हबीब साब ने रज़ा से कहा- मियां तुम शून्य बनाते हो, हम भरते हैं। रज़ा ने कहा सही वक्त पर ज़वाब दूंगा। हबीब साहेब की मौत पर अनायास ही लिखा था- मियां तुम जो शून्य बना गये हो उसे कौन भरेगा? आज न कोई हबीब को याद करता है न रज़ा को। किसी रोज़ जिंदगी हमें भी खारिज कर देगी। क़िताब के फटे हुए पन्ने या पतझर के पत्ते की तरह उड़ा ले जाएगी हवा। ......ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे....अफ़सोस हम न होंगे।

मुबारक हो माँ

ठीक दो साल पहले.....आज ही के दिन यानी ११ जुलाई २००८ को आपका विवाह हुआ था। बहुत-बहुत बधाई। मुझे मालूम है आप ये पोस्ट तब तक नहीं पढ़ेंगी जब तक कोई पढ़ायेगा नहीं। मैं इस बात से सचमुच बहुत खुश हूँ कि विवाह की दूसरी सालगिरह पर आप पूरे दिन मुस्कराती रहीं। आप ऐसे ही अच्छी लगती हैं। सदा हंसती रहो....मुस्कराती रहो...! आपकी ये ख़ुशी देखकर नानू भी बड़े प्रसन्न हैं। पापा तो खुश हैं ही.....नानू से निजात जो मिल गयी है। आप खुश ....पापा खुश... नानू खुश... मैं खुश ...... और क्या चाहिए ?