सोमवार, 31 मई 2010

पिया का घर प्यारा लगे !

बाबुल मेरो नैहर छूटो ही जाय........! मम्मा जा रही हो, हमे भूल मत जाना। बेशक पिया का घर प्यारा लगे पर जहाँ बचपन बीता वो जगह कभी नहीं भूल सकतीं। भैया को ननिहाल कि बहुत यद् आएगी। आपके घर में तो कोई उसे घंटो तक गोद में लेकर खिला भी नहीं सकता। खैर ! तुमने आज पूरे दिन बात नहीं की। चलो माफ़ किया तुम्हारे पिया जो आये थे। मम्मा, अब नई जिंदगी शुरू करो.....अपनी जिंदगी.....अपनी तरह की जिंदगी... जिसको सुहाए, आ जाये....नहीं सुहाए, भाड़ में जाये। करोगी ? नहीं करोगी.......मुझे पता है तुम ऐसा कर ही नहीं सकतीं। कोई बात नहीं तुम जिस में खुश रहो मैं तो उसी में राज़ी... आई लव यूं टू मच मम्मा.....!

शनिवार, 29 मई 2010

आ अब लौट चलें !

मम्मा,
उरई प्रवास का कल आखिरी दिन है। कल पापा के साथ हम लोग घर चलेंगे। आप फिर अकेली हो जाएँगी। है न ? यही सच है ? मेरे होने का कोई मतलब नहीं ? ऐसा कब होगा कि मुझे अपने पास पाकर आपको सकल ज़हान अपनी मुट्ठी में लगे। मुझे छूती हो तो पुलकन होती है न ? मुझे बांहों में समेटती हो तो ऐसा नहीं लगता मानो पूरा आसमान मुट्ठी में आ गया हो ? हमारी दुनिया सबसे न्यारी और सबसे प्यारी है माँ...... मैं हूँ ... तुम हो ... पापा हैं ...और क्या चाहिए ? सागर कितने गंदे हैं .... जब देखो बिना बात के मुंह फुला लेते हैं ... अब हम उनसे भी कोई मतलब नहीं रखेंगे ...! ठीक ? चलो अब अच्छी माँ कि तरह मुझे सुलाओ .... सुबह जल्दी उठाना भी तो है ..... । नहीं तो पापा कहेंगे आलसी हो गया है उल्लू का नाती। गुड नाईट ।

बुधवार, 19 मई 2010

पहली पलटी

मम्मा, आज भैया ने पहली बार पलटी खाई। आपको खुश देखकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई। आपने अपनी ख़ुशी में सबको शरीक किया ------- सागर को छोडकर। क्यों? उन्होंने क्या गुनाह कर दिया ? उन्हें बताना भी ज़रूरी नहीं लगा आपको ? कोई शख्स एक पल में इतना गैर ज़रूरी कैसे हो जाता है ? और हाँ, आपको झूठी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। कोई हो न हो, मैं तो हमेशा उनके पास रहूंगी ही। मेरा उनका रिश्ता ही ऐसा है....... दर्द का रिश्ता ! ...... आप नहीं समझोगी .... जरूरत भी क्या है समझने की। नमस्ते !

सोमवार, 3 मई 2010

तुम्हारी कामना

कल तलक जो नाव था, पतवार था, साहिल भी था।
आज रो - रो के कहता है बचा लो मुझको !
मुम्मा, सब कुछ इतना बदल क्यों जाता है ? हम जाना कहीं चाहते हैं, पहुँच कहीं जाते हैं। जो चाहो वो मिलता नहीं। अयाचित जो मिलता है वह अभीष्ट नहीं होता। जो काम्य है वह अप्राप्य है। जो हस्तगत है वह अकम्य है। पा की कामना कुछ भी हो मैं तो नहीं ही हूँ। तुम्हारी कामना का तो पता ही नहीं चलता। तुम अनुपम तो सदा से थीं अब अनुपम मयी भी हो gyi हो। badhai.