शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

आओ हम जश्न मनाएं!

कैसी हो गयी हो मम्मा आप? इतना अधैर्य ? इतनी अकुलाहट ? इतनी उत्तेजना ? लगता है मेरी मम्मा तो कहीं खो गयी। वापस आ जाओ माँ! फिर पहले जैसी हो जाओ। मेरे आने का वक़्त हो रहा और तुम बेवज़ह परेशान हो रही हो। मुझे आ जाने दो। मैं तुम्हे इतना सुख दूंगी जितना तुमने सपने में भी नहीं सोचा होगा। जीवन में बहुत कुछ अनचाहा होता है। वो हमें दुःख देता है। इसी अनचाहे के बीच सुख के क्षण भी हम तक आ ही जाते हैं। कई बार जो अनचाहा होता है वही जीवन की सबसे बड़ी नियामत बन जाता है। तुम्हारे साथ भी तो यही हुआ। ईश्वर ने सब कुछ दे दिया। अब उसका शुक्रिया अदा करने के बजाय उस से शिकवा क्यों? आओ हम जश्न मनाएं! आई लव यू मम्मा!

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

आई लव यूं !

मम्मा, बहुत ही अच्छा लगा ये जानकर कि आप मेरा ब्लॉग देख रही हैं। आप बहुत ही अच्छी हैं। आप रोज पढ़ोगी तो रोज लिखा भी जायेगा। प्रोमिस!
----- क्या अबके बरस सचमुच वसंत नहीं आया। मुझे तो लगा इस बार वसंत ज्यादा मन और मान से आया। सुबह से शाम तक तो बगरा रहा वसंत। दिन और रात हर पल साथ रहे कंत। आनंद अनंत। तुम ऐसे ही खुश रहा करो। तुम प्रफ्फुल्लित रहती हो तो मुझे भी भला लगता है। हमारे जीवन में कुछ ऐसा भी होता जिसे कहा नहीं जा सकता. हम चाहते हैं कि उस अनकहे को कोई समझ ले। ऐसा हो जाता है तो हम खुश हो लेते हैं। नहीं हो पाता है तो उदास हो जाते हैं। दोनों ही मिलते किसी अपने से ही हैं। बड़ी या अहम बात यह नहीं है कि हम खुश हैं या उदास। असल बात यह है कि हमारे जीवन में कोई अपना है या नहीं! तुम कितनी खुशकिस्मत हो कि तुम्हारे जीवन में इतने सारे अपने हैं। और मैं भी खुशनसीब हूँ जो तुम मेरी इतनी अपनी हो। और क्या चाहिए? तुम हो ! पा हैं! मैं भी आने वाली हूँ। हम तीनों खूब खुश रहा करेंगे। देखना मैं तुम्हें पल भर को भी उदास नहीं होने दूंगी। वादा!

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

त्रासदी

जिन्दगी कब, कैसे, कितनी बदल जाती है पता ही नहीं चलता। जो सब कुछ होता है वह कुछ भी नहीं रहता। बहुत कुछ से कुछ भी नहीं तक का सफ़र बड़े अजीबोगरीब ढंग से तय होता है। यह सफ़र बहुत त्रासद भी होता है। बहुत सुखद भी, बहुत कष्टप्रद भी। आज मैं जहाँ हूँ वहां क्यों हूँ ? जहाँ नहीं हूँ वहां क्यों नहीं हूँ ? ये सवाल जिंदगी भर परेशान करते हैं. फिर भी हम इनका उत्तर नहीं तलाश पाते। हम अक्सर खुद से ही हारते हैं। कोई दूसरा हमें हराता नहीं , हाँ हमारी हार पर खुश ज़रूर हो सकता है। उन्हें बधाई जो आज खुश हैं। लेकिन उन्हें भी याद रहे कि हारा हुआ खिलाड़ी भले ही कभी न जीते पर विजेता हमेशा विजेता नहीं रह सकता। एक न एक दिन उसे भी हारना ही होता है। आमीन!

सोमवार, 18 जनवरी 2010

दर्द का रिश्ता !

छीजना तो जानती हैं न आप? धीरे-धीरे सब कुछ ख़त्म हो जाता है। हाथ में रह जाता है केवल खालीपन। रिश्ता भी ऐसे ही छीजता है। पहले आप मुझे कितना कुछ बताती थीं। करीब-करीब सब कुछ। कब सोकर उठीं। कब चाय पी। कब साहेब गये। कब आये। कब नहाया। कब शेविंग की। कब खाया। एक - एक पल मुझे पता होता था। जागती थीं तो गुड मोर्निंग और सोती थीं तो गुड नाईट कहती ही थीं। अब ऐसा नहीं होता। आज साहेब वापस नहीं आये। लेकिन आपको यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं लगा कि मुझे बता देतीं। तुम्हें लगा होगा कहीं मैं चेंटने न लागुन। आखिर उनका फ़ोन भी तो आना होगा। है न ! कैसे हो जाता ये सब? क्यों बदल जाते हैं सरोकार ? सब अतीत हो गया। ऐसे ही एक दिन एक रिश्ता भी अतीत हो जायेगा। आपको नहीं पता, जब कोई रिश्ता व्यतीत होता है तो कितना दर्द होता है। काश, कभी आप भी इस दर्द को महसूस कर पायें!

रविवार, 17 जनवरी 2010

यही सच है !

देर से ही सही पर समझ में आ गया कि जिंदगी बहुत बेदर्द होती है। न तो किसी के लिए ठहरती है और न ही किसी की पीर को महसूस कर पाती है। आखिर में जो शय आपके साथ होती है वह है आपकी तन्हाई। बुजुर्गों की बात पर बहुत हंसी आती थी कि औरत नरक का द्वार है। त्रिया चरित्र के बारे में बहुत पढ़ा- सुना पर कभी यकीन नहीं हुआ। आज कह सकता हूँ कि हमारे बुजुर्ग सौ प्रतिशत सही थे।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

रेत

मुट्ठी में रेत भरो तो लगता है कुछ हाथ में आ गया। मगर हासिल का यह सुख कितना क्षणभंगुर होता है ? रेत फिसल जाती है। हमें पता भी नहीं चलता। मुट्ठी फिर खाली की खाली। सपने कम से कम तब तक तो अपने होते हैं जब तक टूटते नहीं। और अपने ? अपने तो सपने में भी अपने नहीं रहते। अपनापन ऐसा क्यों होता है ? रीतता क्या है ? मन! वो भी कितने बेमन से। मन इतना बेचारा क्यों होता है ? जहाँ आसरा चाहता है वहां से दुत्कार दिया जाता है। जहां से दवा की उम्मीद होती है वहां से दर्द मिलता है।

ऐसा क्यों होता है ?

मम्मा,
तुमने मेरी सलामती के लिए सूर्य ग्रहण नहीं देखा। लेकिन टीवी पर तो देखा न? चाँद ने सूरज और धरती के बीच आने में कोई कसर तो नहीं छोड़ी! है न ? चाँद का पूरा वजूद दोनों के बीच में आया तो कितना सुन्दर सोने सा छल्ला बन गया ! सूरज और धरती एक पल के लिए एक-दुसरे की आँख से ओझल नहीं हुए। सच्चा प्यार ऐसा ही होता है। तुम भी तो धरती हो। तुम्हारा चाँद सूरज को इतना कैसे ढक लेता है कि वह तुम्हें दिखाई तक नहीं देता?

बुधवार, 6 जनवरी 2010

जन्मदिन मुबारक

मम्मा,
जन्मदिन मुबारक!
तुम बहुत अच्छी हो माँ, सब से अच्छी।
अपने दिल को दुखाया न करो।
मैं हूँ ना!
क्या मेरा होना तुम्हें खुश रखने के लिए पर्याप्त नहीं?
तुम्हारी शुभो।