शनिवार, 17 जुलाई 2010
सबहिं नचावत राम गुसाईं
आवाज़ से शिलाएं टूटती हैं। ये स्थापित तथ्य है। मौन से विराटता बढती है। ये भी स्थापित तथ्य है। यानि बोलते रहेंगे तो क्रोध के ग्लेशियर भी अंततः पिघल जायेंगे। नहीं बोलेंगे तो तिल का ताड़ बन जायेगा। मम्मा, आप बड़ी चतुर हैं। जो आपका दिल चाहता है वही रास्ता अख्तियार कर लेती हैं। आप ये भी जानती हैं कि आप असली गुसाईं हैं........और इतना तो हम भी जानही गये हैं कि सबहिं नचावत राम गुसाईं।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति... बहुत बढ़िया .. लिखते रहिएगा.
जवाब देंहटाएं