रविवार, 17 जनवरी 2010

यही सच है !

देर से ही सही पर समझ में आ गया कि जिंदगी बहुत बेदर्द होती है। न तो किसी के लिए ठहरती है और न ही किसी की पीर को महसूस कर पाती है। आखिर में जो शय आपके साथ होती है वह है आपकी तन्हाई। बुजुर्गों की बात पर बहुत हंसी आती थी कि औरत नरक का द्वार है। त्रिया चरित्र के बारे में बहुत पढ़ा- सुना पर कभी यकीन नहीं हुआ। आज कह सकता हूँ कि हमारे बुजुर्ग सौ प्रतिशत सही थे।

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