कल तलक जो नाव था, पतवार था, साहिल भी था।
आज रो - रो के कहता है बचा लो मुझको !
मुम्मा, सब कुछ इतना बदल क्यों जाता है ? हम जाना कहीं चाहते हैं, पहुँच कहीं जाते हैं। जो चाहो वो मिलता नहीं। अयाचित जो मिलता है वह अभीष्ट नहीं होता। जो काम्य है वह अप्राप्य है। जो हस्तगत है वह अकम्य है। पा की कामना कुछ भी हो मैं तो नहीं ही हूँ। तुम्हारी कामना का तो पता ही नहीं चलता। तुम अनुपम तो सदा से थीं अब अनुपम मयी भी हो gyi हो। badhai.
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acchhi rachna.
जवाब देंहटाएंकल तलक जो नाव था, पतवार था, साहिल भी था।
जवाब देंहटाएंआज रो - रो के कहता है बचा लो मुझको !
-यही दुनिया है..पल पल बदलती दुनिया.
bahut sundar...
जवाब देंहटाएं"पा की कामना कुछ भी हो मैं तो नहीं ही हूँ" - क्यूँ नहीं - कभी उनके दिल में झंकार देखा है? "तुम्हारी कामना का तो पता ही नहीं चलता। तुम अनुपम तो सदा से थीं अब अनुपम मयी भी हो gyi हो"
जवाब देंहटाएं- माँ तो होती ही है महान
सुंदर शब्द और भाव - शुभकामनाएं
जो काम्य है वह अप्राप्य है। जो हस्तगत है वह अकम्य है।
जवाब देंहटाएंकाम्य प्राप्य हो जाये तो जीवन का यह संघर्ष ही समाप्त हो जायेगा और फिर संघर्ष के बिना जीवन कहाँ ----
bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat
kya darshan hai.narayan narayan
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