सोमवार, 3 मई 2010

तुम्हारी कामना

कल तलक जो नाव था, पतवार था, साहिल भी था।
आज रो - रो के कहता है बचा लो मुझको !
मुम्मा, सब कुछ इतना बदल क्यों जाता है ? हम जाना कहीं चाहते हैं, पहुँच कहीं जाते हैं। जो चाहो वो मिलता नहीं। अयाचित जो मिलता है वह अभीष्ट नहीं होता। जो काम्य है वह अप्राप्य है। जो हस्तगत है वह अकम्य है। पा की कामना कुछ भी हो मैं तो नहीं ही हूँ। तुम्हारी कामना का तो पता ही नहीं चलता। तुम अनुपम तो सदा से थीं अब अनुपम मयी भी हो gyi हो। badhai.

7 टिप्‍पणियां:

  1. कल तलक जो नाव था, पतवार था, साहिल भी था।
    आज रो - रो के कहता है बचा लो मुझको !

    -यही दुनिया है..पल पल बदलती दुनिया.

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  2. "पा की कामना कुछ भी हो मैं तो नहीं ही हूँ" - क्यूँ नहीं - कभी उनके दिल में झंकार देखा है? "तुम्हारी कामना का तो पता ही नहीं चलता। तुम अनुपम तो सदा से थीं अब अनुपम मयी भी हो gyi हो"
    - माँ तो होती ही है महान
    सुंदर शब्द और भाव - शुभकामनाएं

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  3. जो काम्य है वह अप्राप्य है। जो हस्तगत है वह अकम्य है।
    काम्य प्राप्य हो जाये तो जीवन का यह संघर्ष ही समाप्त हो जायेगा और फिर संघर्ष के बिना जीवन कहाँ ----

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