सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

सोचना तो सही!

मम्मा ! जिंदगी कितनी अनुपम है! सब कुछ वक़्त के हाथ में। वक़्त से बड़ा हाकिम कोई नहीं। वक़्त जब अनुकूल हो तो प्रतिकूल लोग भी कितने अपने से लगने लगते हैं। जो अनुकूल होते हैं वे हाशिये पर भेज दिए जाते हैं। लेकिन होने और लगने में फर्क तो होता है न ? जो होता है वह दीखता नहीं ---- जो दीखता है वह होता नहीं। लेकिन जिंदगी में मिराज़ न हों तो हम शायद खुश रहना ही भूल जाएँ। वक़्त का क्या ठिकाना! कभी किसी का सगा नहीं होता। हाँ, इतना तय है जो कल था वह आज नहीं --- जो आज है वह भी कल नहीं होगा। ऐसे ही किसी कल में हम और आप भी नहीं होंगे। रोजे महशर हम शर्मिंदा न हों इसके लिए ज़रूरी है हर रिश्ते को उसका पावना देना। कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐसा कर पाने में जाने- अनजाने कहीं कोई चूक हो रही हो। सोचना तो सही!

2 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी में मिराज़ न हों तो हम शायद खुश रहना ही भूल जाएँ। -सही कहा!

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  2. dheere dheere insaan apane ittraaf kee duniya ko apanee soch se samajhane lagata haipar jitne log jaise log vaisee hee unakee soch.........
    acchee post..........

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