रविवार, 11 जुलाई 2010

अफ़सोस हम न होंगे

जिंदगी कितनी अजीब होती है! जो न चाहो वो तपाक से हो जाता है.... जिसे टूट कर चाहो वो तोड़कर अपने रस्ते चल देता है। आप तांगे के घोड़े की तरह बेसबब दौड़ते चले जाते हैं....अजानी राह पर...अचीन्ही मंजिल के लिए। यही है जिंदगी....! कभी-कभी मन हिसाबी होना चाहता है.... । देखने को मन करता है...क्या खोया , क्या पाया? तब पता चलता है , था क्या जो खो दोगे ? है क्या जो पा लोगे ? एक दिन मैं हबीब तनवीर और हैदर रज़ा के साथ बैठी थी हबीब साब ने रज़ा से कहा- मियां तुम शून्य बनाते हो, हम भरते हैं। रज़ा ने कहा सही वक्त पर ज़वाब दूंगा। हबीब साहेब की मौत पर अनायास ही लिखा था- मियां तुम जो शून्य बना गये हो उसे कौन भरेगा? आज न कोई हबीब को याद करता है न रज़ा को। किसी रोज़ जिंदगी हमें भी खारिज कर देगी। क़िताब के फटे हुए पन्ने या पतझर के पत्ते की तरह उड़ा ले जाएगी हवा। ......ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे....अफ़सोस हम न होंगे।

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