रविवार, 6 दिसंबर 2009
आमीन !!!
आपका गुरूर कभी नहीं टूटेगा। कभी भी। फ़िर भी आपको इस एहसास से तकलीफ हुई। और एक शख्स टूट गया तो कुछ नहीं? चलो नहीं तो नहीं। यह कोई जोर-जबरदस्ती की बात तो है नहीं। लेकिन फ़िर आडम्बर भी क्यों ? आप और आपके पति का अहम सबसे बड़ा। हर बार उसे संतुष्ट करने के लिए सागर ही क्यों झुकें ? उनका कोई अहम नहीं ! आप चाहतीं तो इस मौके पर यह साबित कर सकतीं थीं कि उन्हें हाशिये पर नहीं फेंका जा सकता। लेकिन आपने तो गलती मान ली। आप तो वही सब करने लगीं जो वे लोग चाहते थे। इतना ही नहीं इसमें खुश रहने का दिखावा भी बखूबी करने लगीं। वे यही तो चाहते थे। आप आइडियल बहू बन गईं। उनके रस्ते का कांटा भी निकल गया। पतिदेव भी अपनी मनमर्जी करने को आज़ाद। आप के पास खिलौना आ ही रहा है। अब इन सबके बीच सागर की गुंजाइश ही कहाँ ? आप नहीं टूटी हैं, यह आप भी जानती हैं। जो टूटा है वह अपने ओरीजनल शेप में कभी आ भी नहीं पायेगा। आपको क्या ? आपको तो ऐसा करने की आदत है। खैर ! शांतनु को बहुत-बहुत प्यार। उसके लिए सब कुछ शुभ हो। आमीन !!!
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आत्मालाप सा प्रतीत होता है आपका आलेख.
जवाब देंहटाएंशब्द और भाव सुन्दर