गुरुवार, 5 अगस्त 2010

खूब लिखा। बहुत खूब लिखा। लगता है सारे ज़हां का दर्द तुम्हारे जिगर में हैं। लोगों के बारे जो लिखा वो तो राम जाने सच है या झूठ, लेकिन लिखा बहुत जीदारी से है। लिखते रहो। लिखना यानि प्रवाहित होना। बहना। गतिमान होना। गति है तो सदगति है, नहीं तो दुर्गति। अलबत्ता दो बातों से सहमत नहीं हूँ। पहली यह कि संस्कार कभी परिवार से नहीं मिलते। वे परिवेश से मिलते हैं। परिवेश बदलता है तो संस्कार भी बदलते हैं। इलाहाबाद का भैय्या मुंबई का बिग बी हो जाता है। ये बदलाव परिवार के संस्कारों से नहीं आये। ऐसा होता तो वे ऐश के साथ कजरारे (शादी के बाद भी ) पर ठुमके नहीं लगाते। इलाहाबाद में होते तो भी नहीं लगाते। मुंबई में हैं इसलिए लगाये। हमें ही देख लो। हमारे परिवारों ने ये संस्कार कहाँ दिए कि एक डाली के सारे फूल अलग-अलग बिखर जाओ। मगर परिवेश ने इस मुकाम पर ला दिया कि........ । दूसरी बात ईश्वर की। निजी तौर पर मेरा तजुर्बा यह है कि ईश्वर सच के साथ होता है। हम अगर खुद एक पक्ष हों तो ज़ाहिर है कि हम खुद को ही सही समझेंगे। कई बार इसके उल्ट भी होता है। ईश्वर ततष्ठ है। निर्विकार है। उस पर संदेह क्यों ? सिर्फ इसलिए कि कुछेक बार वह हमें अपने साथ नहीं लगता। मेरे भाई, लगने और होने में बहुत फर्क होता है। जो इस फर्क को समझ गया वह सदा सुखी...... न समझे वो अनाड़ीहै.......!

बुधवार, 4 अगस्त 2010

धांसू पिच्चर और आंवले की चटनी

मम्मा, सौरभ अंकल आपको पसंद हैं न। पढ़िए उनकी लेखनी से निकला लेख।
सौरभ द्विवेदी
एकदम झिंटाक पिच्चर है 'थ्री इडियट्स'। सच्ची बोल रहा हूं, रिव्यू पढ़कर फंडे नहीं दे रहा। कल देखकर आया रात 11 बजे वाला शो। ज़िंदगी में पहली बार रेलगाड़ी जित्ती लंबी लाइन लगी थी प्रिया सिनेमा के सामने। खैर, अंदर पहुंचे तो पहली राहत मिली रित्तिक रौशन का ऐड बदला हुआ देखकर। यार, पिछले चार साल से वही पीली मोटरसाइकल से कीचड़ उछाल रहे थे रौशन बाबू। बोले तो कीचड़ के छींटों के कलर से लेकर उनकी टोपी पर लगे पीतल के बटन तक याद हो गए थे। अबकी नया ऐड आया, उतना ही बेवकूफाना, मगर नया, सो कुछ दिन झेला जा सकता है।

खैर, इस दफा पिच्चर की बात करनी है। तो खूब तो हंसी आई और करीना भी फॉर ए चेंज काफी दिनों बाद अपने मैनरिज़म से दूर फ्रेश लग रही थीं। खासतौर पर एक शॉट में कैमरा जब उनके चेहरे पर ज़ूम-इन करता है, तो आहाहाहा क्या होंठ लग रहे थे। जैसे ताज़ा गुलाब की दो पास-पास सिमटी पंखुड़ियों के बीच से ओस की तीन बूंदें झांक रही हों।

आमिर का चर्चा होता है कभी लुक को लेकर, कभी हटकर रोल को लेकर। मैं पूरी संजीदगी से यह कहना चाहता हूं कि आमिर दशक के अभिनेता हैं, नंबर और रेटिंग के सारे जोखिमों को ध्यान में रखकर भी यह ऐलान इसलिए क्योंकि आमिर परदे पर आमिर नहीं रहते।
आमिर अपने पहले ही शॉट में बुदबुदाते हैं, आल इज्ज वेल और आखिरी शॉट तक कहीं भी कुछ भी गड़बड़ नहीं लगता। दिमाग में पिच्चर जाने से पहले लग रहा था कि यार 40 प्लस के हैं, बीटेक स्टूडेंट कैसे दिखेंगे आमिर बाबू। मगर मैं खुश था कि मैं गलत था। ढीली-सी पैंट जिसके पायचे जूतों के सोल से याराना गांठ चुके हैं, टीशर्ट और बेफिक्र कंधे जो बता रहे थे कि फिल्म में बॉडी लैंग्वेज के हिस्से सबसे ज्यादा डायलॉग आते हैं।
शरमन जोशी कहीं से भी हीरो नहीं लगते और हमें सेवंटी एमएम के पर्दे पर अब हीरो देखने भी नहीं। कुछ अपने से दिखते लोग हों यार, जो रोएं तो सच्ची में लगे कि रो रहें, जब डरें तो लगे कि वाकई उनकी चौड़ी हो गई है। खैर शरमन ने बढ़िया काम किया। कैमरा जब उनके नाक के टिप पर बने निशान को दिखाता है, तो उस एक क्षण लगता है कि अब मेकअप बुद्धू बनाने की जुगत में ही नहीं लगा रहता। इसी तरह फिल्म के लास्ट में जब करीना अपने बाप से झगड़ती है तो उनके चेहरे पर मेकअप और आंखों में काजल नहीं होता। तब हमें सुंदर करीना दिखती है आंवले की चटनी की तरह, खट्टी-सी, अच्छी-सी और देखकर वैसा ही लगता है जैसे खट्टे आंवले को खाने के बाद तालू के नीचे और दांत के पीछे होता है, गुदगुदा-सा स्वाद।
खैर, आप भी सोचेंगे, कहां से ये करीना की तारीफ में लिखे ही जा रहा है। बोमन ईरानी ने बढ़िया ऐक्टिंग की। खासतौर पर जीभ को दांतों के बीच में लाकर संवाद अदायगी का तरीका। हालांकि यह नया नहीं है। 'एक रुका हुआ फैसला' में पंकज कपूर भी ऐसे ही डायलॉग बोल रहे थे और खूब जम रहे थे। माधवन की हंसी बहुत प्यारी है, मगर 'रहना है तेरे दिल में' के बाद से उन्होंने अपनी डबल चिन पर ध्यान ही नहीं दिया और हंसी उनकी आंखों से फिसलकर चेहरे के फैट पर चली जाती है। ऐक्टिंग में लेकिन पूरे नंबर।
अब बात असली हीरो लोगों की। सबसे पहले जोशी। इनका पहला नाम याद नहीं आ रहा तो अपने के लिए जोशी ही हैं। क्या कमाल की कहानी लिखी यार तुमने राजकुमार हिरानी के साथ मिलकर। शब्बास। मज़ा आ गया। कमाल कर दित्ता। राजकुमार हिरानी तो हैं ही अनूठे। कभी उनके फोटो गौर से देखी है आपने? मूंछों के ऊपर जो आंखें टिमटिमाती हैं न, उनमें गीलापन और हंसी दोनों एकसाथ दिखते हैं। इसीलिए उनकी फिल्में हंसाती हैं, रुलाती हैं, सिखाती हैं और हां, सिनेमा पर मेरी श्रद्धा को भी जमकर बढ़ाती हैं।
तो अपन ने कल रात पिच्चर देखी और उसे देखने के दौरान वैसा ही फील किया, जैसे मूंछों के शुरुआती निशान आते देख किया था। यार, उस टाइम पिच्चर जाते थे तो लगता था कि स्साला हीरो हीरो नहीं हम हैं, बस वो दुश्मनों से लड़ रहा है और हमें सिलेबस से लड़ना है। टॉप करना है, मेहनत से पढ़ना है और फिर एक दिन फूलों के प्रिंट वाले दुपट्टे को संभालती, हाथों में सुंदर से कड़े को गोल घुमाती और कभी क्लिप हटाकर बाल ठीक करती एक परी हमें भी मिल जाएगी। तो हिंदी सिनेमा हमें सपने देखना सिखाता है, उनमें रंग भरता है और हां, किस्सों की ताकत से रूबरू भी करवाता है।
आपको लग रहा होगा कि इस फिलम के मेसेज पर तो बात की ही नहीं। तो भैया उसके लिए तमाम लोग हैं, जो आपको एजुकेशन सिस्टम पर बताएंगे और तमाम बातें सुझाएंगे। अपन को तो एक बात करनी है और वो है आमिर खान का करीना की बहन की डिलिवरी करवाना। बड़ा नाज़ुक मसला है। स्साला लड़का लोग जब तक खुद बाप नहीं बनते, किसी का फूला पेट या किसी महिला की खराब तबीयत खुसुर-पुसुर या हल्के मज़ाक तक ही सीमित रहती है।
तब तक आप लोग इंडिया के सिनेमा का मजा लीजिए, जो बुद्धू है, लेकिन उतना ही प्यारा भी।
इडियट को हिंदी में बुद्धू ही कहेंगे न।

मुंह से दूर रखो

ममा, मैं अक्सर आपका मोबाइल मुंह में ले लेता हूँ। आप रोकती ही नहीं। पापा भी डॉक्टर होने के बावजूद मना नहीं करते। लेकिन यह खबर पढ़ने के बाद शायद आपको अपना ही मोबाइल फोन उठाने का जी न करे । यकीन करना मुश्किल लगता है
पर एक स्टडी से पता लगा है कि मोबाइल हैंडसेट कीटाणुओं का बड़ा घर बनते जा रहे हैं। हालत यह है कि टॉइलेट फ्लश के हैंडल से 18 गुना ज्यादा कीटाणु एक आम हैंडसेट में पाए जाते हैं। इस नतीजे पर पहुंचने से पहले ब्रिटिश रिसर्चरों ने कई हैंडसेटों पर रिसर्च की। इनमें से एक चौथाई इतने गंदे पाए गए कि उनमें टीवीसी बैक्टीरिया स्वीकार्य स्तर से 10 गुना ज्यादा पाया गया। टीवीसी या टोटल वायबल काउंट यह बताता है कि किसी भी सैंपल में बैक्टीरिया, यीस्ट जैसे माइक्रो ऑर्गेनिजम कितनी मात्रा में हैं। टीवीसी का ज्यादा लेवल इस बात का सबूत है कि व्यक्तिगत साफ-सफाई में भारी लापरवाही बरती जा रही है। यह स्थिति कीटाणुओं को पनपने का बड़ा मौका देती है।
एक हैंडसेट में बैक्टीरिया की तादाद इतनी ज्यादा थी कि यह मोबाइल यूजर के पेट में भीषण दर्द का कारण बन सकता था। रिसर्चरों ने 'विच?' मैगजीन के लिए यह स्टडी की थी। 30 फोनों के सैंपलों से पता लगा कि ब्रिटेन में इस्तेमाल हो रहे 6.4 करोड़ मोबाइलों में से 1.4 करोड़ फोनों से यूजर की हेल्थ को नुकसान हो सकता है। स्टडी से जुड़े लीड रिसर्चर जिम फ्रांसिस ने डेली मेल को बताया कि एक मोबाइल पर खतरनाक बैक्टीरिया इतने ज्यादा थे कि उसे स्टरलाइज करना पड़ा। सबसे ज्यादा गंदगी वाले फोन में इंटेरोबैक्टीरिया सेफ्टी लेवल से 39 गुना ज्यादा पाए गए। इंटेरोबैक्टीरिया बैक्टीरिया का ऐसा गुप है जो इंसान और जानवरों की निचली आंतों में रहता है। फोन में फूड पॉइजनिंग से जुड़े बैक्टीरिया और कोली जैसे कीड़े भी मिले। विच मैगजीन के मुताबिक, कीटाणु आपके हाथों में पनपते हैं और फोन पकड़ने पर वे हैंडसेट में चले जाते हैं। इसके बाद वे बार-बार हैंडसेट पकड़ने पर हाथों में आते रहते हैं। लोगों को चाहिए कि वे व्यक्तिगत साफ-सफाई का ख्याल रखें और जिन्हें भी फोन पकड़ाएं उन्हें भी सफाई का ध्यान दिलाएं। इससे पहले इसी मैगजीन ने पता लगाया था कि कुछ कंप्यूटर कीबोर्ड में टॉइलेट की सीट से भी ज्यादा खतरनाक बैक्टीरिया रहते हैं।