बहुत सागर सागर भजती थी देख लिया जरा देर नही लगी अपना से पराया करने में ,मैं तो मैं ,तुम भी गयी कम से .बधाई कितनी शिकायते अंतहीन कभी पूछके देखना कि क्या मैं सचमुच इतनी बुरी हूँ
सपनों की दुनिया हमेशा बहुत अपनी सी लगी। शायद इसीलिए जब भी मौका मिलता है उनमें खो जाती हूँ। मन में आया क्यों न हम सब अपने सपनों को आपस में साझा करें। इसी मंशा से ब्लॉग पर आई हूँ। जी चाहता है सब कुछ जान लूँ। लेकिन माँ कहती है अभी नहीं। माँ ने अभी तक मुझे सब से छुपाकर रखा है। किसी से भी बात नहीं करने देती। आप तो मुझसे बात करेंगे न ?